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चरणानुयोग-प्रवेशिका १. प्र०-चरणानुयोग किसे कहते हैं ? ___ उ०-चरण कहते हैं चारित्रको और अनुयोग कहते हैं शास्त्रको। जिस शास्त्रमें गृहस्थों और मुनियों के सम्यक् चारित्रका कथन होता है उसे चरणानुयोग कहते हैं।
२. प्र०-चारित्रमें और सम्यकचारित्रमें क्या अन्तर है ?
उ०-चारित्र मिथ्या भी होता है और सम्यक् भी होता है, जैसे ज्ञान सच्चा भी होता है और झूठा भी होता है ।
३. प्र०-मिथ्याचारित्र किसे कहते हैं ?
उ०-गलत आचरणको मिथ्याचारित्र कहते हैं। यह मिथ्याचारित्र दो प्रकारका है-एक गहस्थोंका मिथ्याचारित्र और दूसरा साधुओंका मिथ्याचारित्र । मिथ्यादर्शन और मिथ्याज्ञानके साथ इन्द्रियोंके विषयोंमें प्रवृत्ति करना गृहस्थोंका मिथ्याचारित्र है और अपनी नामवरी, रुपये-पैसेका लाभ और अपनी पूजा प्रतिष्ठाकी चाह मनमें रखकर तथा आत्मा और अनात्माके भेदको न जानकर तरह-तरहसे केवल शरीरको कष्ट देना साधुओंका मिथ्याचारित्र है।
४.प्र०-मिथ्यादर्शन किसे कहते हैं ?
उ०-कुदेव, कुगुरु और कुधर्म पर श्रद्धा रखना, शरीरके जन्मको अपना जन्म और शरीरके नाशको अपना नाश मानना मिथ्यादर्शन है ।
५. प्र०-मिथ्याज्ञान किसे कहते हैं ?
उ०-ऊपर कही हुई मिथ्याश्रद्धाके साथ जो ज्ञान होता है उसीको मिथ्याज्ञान कहते हैं।
६.प्र०-कुदेव किसे कहते हैं ?
उ०-रागद्वेष रूपी मलसे जिनकी आत्मा मलिन है तथा जो अपने साथ स्त्री और हाथमें अस्त्र-शस्त्र रखते हैं वे सब देव कुदेव हैं।
७. प्र-कुगुरु किसे कहते हैं ? ।
उ०-जिनके अन्तरमें राग-द्वेष भरा हुआ है और बाहरमें जिन्हें धन वस्त्र वगैरहसे मोह है ऐसे भेषधारी गुरुओंको कुगुरु कहते हैं।
८.प्र०-कुधर्म किसे कहते हैं ? १. रत्न० श्रा०, श्लो० ४५ ॥
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