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________________ ४४ चरणानुयोग-प्रवेशिका - अपने शरीर में लगे हुए मलकी ओर लक्ष्य न देकर आत्मभावना में ही लीन रहना मल परीषहजय है । 111 - ३४६. प्र० – सत्कारपुरस्कार परीषहजय किसे कहते हैं ? उ०--सम्मान और अपमान में समभाव रखना और आदर सत्कार न होने पर भी खेद खिन्न न होना सत्कार - पुरस्कार परीषहजय है । ३४७. प्र० - प्रज्ञा परीषहजय किसे कहते हैं ? उ०—अपने पांडित्यका गर्व न होना प्रज्ञा परीषहजय है । ३४८. प्र० - अज्ञान परीषहजय किसे कहते हैं ? उ०- यदि कोई तिरस्कार करे, तू अज्ञानी है, कुछ जानता नहीं है, तो उससे खिन्न न होकर ज्ञानकी प्राप्तिका ही बराबर प्रयत्न करते रहना अज्ञान परीषहजय है । ३४९. प्र०- - अदर्शन परीषहजय किसे कहते हैं ? उ० – श्रद्धानसे डिगने के निमित्त उपस्थित होनेपर भी मुनि मार्ग में बराबर आस्था बनाये रखना अदर्शन परोषहजय है । ३५०. प्र० - किस कर्मके उदयसे कौन-कौन परीषह होती है ? उ०- ज्ञानावरण कर्मके उदय में प्रज्ञा और अज्ञान परोह होती है । दर्शन मोहनीयके उदयमें अदर्शन परीषह होती है । अन्तराय कर्मके उदयमें अलाभ परीषह होती है | चारित्र मोहनीयके उदय में नाग्न्य, निषद्या, आक्रोश, याचना, सत्कार-पुरस्कार, अरति, स्त्री ये आठ परीषह होती हैं और वेदनीय कर्मके उदय में क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल ये ग्यारह परीषह होती हैं । ३५१. प्र० - एक जीव में एक समय में एक साथ कितनी परोषह हो सकती हैं ? उ०- एक जीवमें एक समय में एक साथ एकसे लेकर उन्नीस परीषह तक हो सकती हैं ? क्योंकि शीत और उष्ण परोषहमेंसे एक ही हो सकती है और शय्या, चर्या, निषद्या मेंसे एक हो हो सकती है । ३५२. प्र० - प्रज्ञा और अज्ञान परीषह एक साथ कैसे हो सकती है ? उ०- श्रुतज्ञान की अपेक्षा प्रज्ञा परोषह और अवधिज्ञानके अभाव में अज्ञान परीषह हो सकती है | ३५३. प्र० - किस गुणस्थानमें कितनी परीषह होती हैं ? उ०- पहले के सात गुणस्थानों में सब परीषह होती हैं । आठवें गुणस्थान में अदर्शन परोष के बिना शेष इक्कीस परीषह होती हैं । नौवें गुणस्थानके सवेद भाग में अरति परोष के बिना बीस परीषह होती हैं और अवेद भागमें स्त्री Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003834
Book TitleCharnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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