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चरणानुयोग-प्रवेशिका ३३५. प्र०-स्त्री परीषहजय किसे कहते हैं ?
उ०-स्त्रियोंके द्वारा बाधा पहुँचानेपर भी उनके रूपको देखनेको अथवा उनका आलिंगन करनेको भावनाका भी न होना स्त्रो परोषहजय है।
३३६. प्र०-चर्या परीषहजय किसे कहते हैं ?
उ०-पवनकी तरह एकाकी विहार करते हुए भयानक वनमें भी सिंहको तरह निर्भय रहना और नंगे पैरोंमें कंकर पत्थर चुभनेपर भी खेद खिन्न न होना चर्या परोषहजय है।
३३७. प्र०-निषद्या परीषहजय किसे कहते हैं ?
उ०-जिस आसनसे बैठे हों उससे विचलित न होना निषद्या परोषह जय है।
३३८ प्र०-शय्या परोषहजय किसे कहते हैं ?
उ०-रात्रिमें ऊँची नीची कठोर भूमिपर पूरा बदन सीधा रखकर एक करवटसे सोना शय्यापरीषह जय है।
३३९. प्र० -आक्रोश परीषहजय किसे कहते हैं ?
उ०-अत्यन्त कठोर वचनोंको सुनकर भी शान्त रहना आक्रोश परोषह जय है।
३४०. प्र०-वध परीषहजय किसे कहते हैं ?
उ०-जैसे चन्दनको जलानेपर भी वह सुगन्ध ही देता है वैसे ही अपनेको मारने पोटनेवालोंपर भी क्रोध न करके उनका भला हो विचारना वध परीषह जय है।
३४१. प्र०-याचना परीषहजय किसे कहते हैं ?
उ०—आहार वगैरहके न मिलनेसे भले ही प्राण चले जाँय किन्तु किसोसे याचना करना तो दूर, मुँहपर दोनता भी न लाना याचना परीषहजय है।
३४२. प्र०-अलाभ परीषहजय किसे कहते हैं ?
उ०-आहारादिका लाभ न होनेपर भी वैसा ही सन्तुष्ट रहना जैसा लाभ होनेपर यह अलाभपरीषह जय है।
३४३. प्र०-रोग परीषहजय किसे कहते हैं ?
उ०-शरीरमें अनेक व्याधियाँ होते हुए भी उनकी चिकित्साका भी विचार न करना रोग परीषहजय है।
३४४. प्र०-तृणस्पर्श परीषहजय किसे कहते हैं ? । उ०-तृण कांटे वगैरहकी परीषहको सहना तृणस्पर्श परीषहजय है। ३४५.प्र०-मल परीषहजय किसे कहते हैं ?
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