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चरणानुयोग-प्रवेशिका ३१३. प्र०-अनित्य अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उ०--शरीर और इन्द्रियोंके विषय जलके बुलबुलेके समान अनित्य हैं। इस संसारमें कुछ ध्रुव नहीं है ऐसा विचारना अनित्यानुप्रेक्षा है।
३१४. प्र०-अशरण अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उ०--भूखे शेरके पंजेमें आये हुए हिरनकी तरह जन्म, जरा, मृत्यु आदिके दुःखोंसे पीड़ित प्राणीका कोई भी शरण नहीं है । यदि कोई शरण है तो वह धर्म हो शरण है, ऐसा विचारना अशरण अनुप्रेक्षा है।
३१५. प्र०-संसार अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ? उ०--संसारके स्वरूपका विचार करना संसार अनुप्रेक्षा है। ३१६. प्र०-एकत्व अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उ०-- जन्म, जरा और मरणके महादुःख भोगनेके लिये मैं अकेला हो हूँ, अकेला ही जन्म लेता हूँ, अकेला ही मरता हूं इत्यादि चिन्तन करना एकत्व अनुप्रेक्षा है।
३१७. प्र०-अन्यत्व अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उ०--मैं शरीरसे भी भिन्न हूँ, फिर बाह्य परिग्रहका तो कहना हो क्या है, इस प्रकारका विचार करना अन्यत्व अनुप्रेक्षा है।।
३१८. प्र०-अशुचि अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उ०--शरीरकी अपवित्रताका चिन्तन करना कि यह शरीर मलमूत्र वगैरह का घर है आदि अशचि अनुप्रेक्षा है।
३१९. प्र०-आस्रव अनुप्रेक्षा किसे कहते है ?
उ.--कर्मों के आने के द्वारको आस्रव कहते हैं। आस्रवका विचार करना आस्रव अनुप्रेक्षा है।
३२०. प्र०-संवर अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उ०-कर्मोंके आनेके द्वारको रोक देनेका नाम संवर है । संवरके गुणोंका विचार करना संवर अनुप्रेक्षा है ।
३२१. प्र०-निर्जरा अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उ०-आत्मासे कर्मोंके झड़नेका नाम निर्जरा है। निर्जराके स्वरूपका विचार करना निर्जरा अनुप्रेक्षा है।
३२२. प्र०-लोकानुप्रेक्षा किसे कहते हैं ? उ०-लोकके आकार वगैरहका चिन्तन करना लोकानुप्रेक्षा है । ३२३. प्र०-बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा किसे कहते हैं ?
उ०-संसारमें सब चोज मिलना सुलभ है किन्तु सच्चे ज्ञानको प्राप्ति दुर्लभ है, ऐसा विचारना बोधिदुर्लभ अनुप्रेक्षा है।
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