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चरणानुयोग-प्रवेशिका २०७. प्र०-नाम प्रत्याख्यान वगैरहका क्या स्वरूप है ?
उ०—जो नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव कल्याणकारी नही हैं उनका सेवन मुमुक्षुको नहीं करना चाहिये ।
२०८. प्र०-प्रत्याख्यान करनेकी क्या विधि है ?
उ०—प्रत्याख्यान विनय, अनुभाषा, अनुपालन और परिणामसे शुद्ध होना चाहिये।
२०९. प्र०--विनयशुद्ध प्रत्याख्यान किसे कहते हैं ? ।
उ०—जो प्रत्याख्यान कृतिकर्म, औपचारिक विनय; ज्ञान विनय, दर्शन विनय और चारित्र विनयसे युक्त होता है वह विनय शुद्ध प्रत्याख्यान है।
२१०. प्र०-कृतिकर्म किसे कहते हैं ?
उ०-सिद्धभक्ति, योगभक्ति और गुरुभक्तिपूर्वक कायोत्सर्ग करनेको कृतिकर्म कहते हैं।
२११. प्र०-अनुभाषाशुद्ध प्रत्याख्यान किसे कहते हैं ?
उ०-गुरुने प्रत्याख्यानके पाठका जैसा उच्चारण किया हो, वैसा ही शुद्ध उच्चारण करना अनुभाषाशुद्ध प्रत्याख्यान है।
२१२. प्र०-अनुपालनशुद्ध प्रत्याख्यानका क्या स्वरूप है ?
उ०-रोग, उपसर्ग, थकान, भिक्ष, वर्षाकाल, राज्यविप्लव और भयानक अटवी वगैरहमें भी प्रत्याख्यानका अनुपालन करना, उसको भंग नहीं होने देना अनुपालनशुद्ध प्रत्याख्यान है।
२१३. प्र०-परिणामविशुद्ध प्रत्याख्यानका क्या स्वरूप है ?
उ०-प्रत्याख्यानका राग-परिणाम या द्वेष-परिणामसे दूषित न होना परिणामविशुद्ध प्रत्याख्यान है।
२१४. प्र०-कायोत्सर्ग किसे कहते हैं ?
उ०—दोनों चरणोंके बोचमें चार अंगुलका अन्तर रखते हुए दोनों हाथों को नोचे लटकाकर निश्चल खड़े होना और शरीरसे ममत्व न करना कायोत्सर्ग है।
२१५. प्र०-कायोत्सर्ग किसलिये किया जाता है ?
उ.-- मुमुक्षु मनुष्य निद्रापर विजय प्राप्त करके राग, द्वेष, भय, मद आदिके द्वारा व्रतोंमें लगे हुए अतिचारोंको विशुद्धिके लिये, कर्मोको निर्जराके लिये और तपको वृद्धि के लिए कायोत्सर्ग करता है।
२१६. प्र०-कायोत्सर्गके कालका प्रमाण कितना है? उ.-कायोत्सर्गका उत्कृष्ट काल एक वर्ष और जघन्यकाल अन्तर्मुहूर्त है।
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