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________________ २६ चरणानुयोग-प्रवेशिका उ०-गर्भावतरण आदि कल्याणकोंसे पवित्र हुए कालका वर्णन करना तीर्थङ्करोंका कालस्तव है। १८९. प्र०-भावस्तव किसे कहते हैं ? उ.-तीर्थङ्करोंके केवलज्ञान, केवलदर्शन आदि असाधारण गुणोंका वर्णन करना भावस्तव है। १९०. प्र०-वन्दना किसे कहते हैं ? उ०-शुद्धभावोंसे किसी एककी नमस्कार आदि रूप विनय करनेको वन्दना कहते हैं। १९१. प्र०--वन्दनाके कितने भेद हैं ? उ०-वन्दनाके भी छै भेद हैं-नामवन्दना, स्थापनावन्दना, द्रव्यवन्दना, क्षत्रवन्दना, कालवन्दना और भाववन्दना । १९२. प्र०-नामवन्दना वगैरह का क्या स्वरूप है ? उ०—किसी एक पूज्य व्यक्तिका नामोच्चारण नामवन्दना है, प्रतिमाका स्तवन स्थापनावन्दना है, शरीरका स्तवन द्रव्यवन्दना है, कल्याणक स्थानोंका स्तवन क्षेत्रवन्दना है, कल्याणकोंके कालका स्तवनकाल वन्दना है और गुणोंका स्तवन भाववन्दना है। १९३. प्र०-प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ? उ०-किये हए दोषोंके शोधन करनेको प्रतिक्रमण कहते हैं। १९४. ३०-प्रतिक्रमण के कितने भेद हैं ? उ०-प्रतिक्रमणके सात भेद हैं-दैवसिक, रात्रिक, ऐर्यापथिक, पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक और उत्तमार्थ । १९५. प्र०-देवसिक प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ? उ०-दिनभरमें कृत-कारित अनुमोदनासे लगे हुए दोषोंका मन, वचन, कायसे शोधन करना दैवसिक प्रतिक्रमण हैं। १९६. प्र०-रात्रिक प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ? उ०-रातमें कृत कारित अनुमोदनासे लगे हुए दोषोंका मन, वचन, कायसे शोधन करनेको रात्रिक प्रतिक्रमण कहते हैं। १९७.प्र०-ऐर्यापथिक प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ? उ०—छै कायके जोवोंके विषय में लगे हुए दोषोंके दूर करनेको ऐपिथिक प्रतिक्रमण कहते हैं। १९८. प्र०-पाक्षिक, चातुर्मासिक और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण किसे कहते हैं ? उ०-पन्द्रह दिनमें कृत-कारित अनुमोदनासे लगे हुए दोषोंका मन, वचन, Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003834
Book TitleCharnanuyog Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailashchandra Shastri
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1986
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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