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भक्तमाल; परिशिष्ट ३ मोहनदास भजै हरि प्यारो। सिखन साखा सबसौं न्यारो। रहै आसोप ब्रह्म ल्यो लाई। गुरु दादू की वन्ध्यो सगाई ॥५८ मोहनदास दफतरी सन्तू। सदगति भये सु भज भगवन्तू। चत्रदास सिख भगति प्रकासू। झांझू के सोहे निज दासू ॥५६ देवल दया रही भरपूरी। सन्त विराजै जीवन मूरी। तहाँ सुख को सागर दयालदासू। प्रेम प्रीति पंजर परकासू ॥६० गलित गरीबी वाइक दोन। रहै अहोनिसि हरि सूं लीन। स्वामी दादू को मत मारू। छिन छिन देखै हरि सुख सारू ॥६१ कलो दिसावर सांगौ सन्तू। सिख पहराज सही दिढमन्तू। भागां कर्मा के हरि रंगू। साध संग सू पलट्यौ अंगू ॥६२ पीपा-वंशी सन्त पिरागू। प्रगट भये सु पूरण भागू। हिरदै विराजै दीनदयालू । रहै सोह वाहू गोपालू ॥६३ वन सु दयाल धना को सांगो। हरि सन्तन में लीयो आगो। अहनिसि सुरत निरंतर जोरी। शंकर जसो उनमनी डोरी ।।६४ पंडित कपिल और जगनाथू। निरवह्यौ सील गह्यौ हरि हाथू । सिख सुन्दर गोपाल दयालू । सतगुरु काट सकल झंझालू ।।६५ सुन्दरदास सन्त निज प्रादू। सिख सुधरे पीपा पहलादू । केसौ चतरा के नहिं प्रापौ। पोता सिख हरिदास र हापौ ।।६६ हरीदास हिरदै हरि हीरू। सिख नारायण निर्मल सरीरू । पीपा वंशी पूरण ग्यांन। परम-जोति में धरे सु ध्यान ॥६७ ऊधौ माधौ रामदास हेमू। अर देवल को बालक पेमू।। श्यामदास झालांणौ साधू। करै सु अवगति को प्राराधु ॥६८ प्रागदास विहांणी सन्त सुजाण। दादू किरपा वजे नीसारण। चरणदास सिख वन्यो नारायण। रामदास भगवन्त परायण ॥६९ संतदास परमानंद सुखनिवासू । ब्रह्म निरूपै गोविन्ददासू। गोपाल दामोदर गुरु सिख लीन। केसो मनोहर मधुकर दोन ॥७० मोहन मेवाडो मन थीरू। संगि जगनाथ माधौ मति धीरू । गरीबजन गोविन्द गुरु ग्यांन। हरीदास के हरि को ध्यान ॥७१ निर्मल सन्त निजामर नागर। दोऊँ भये ग्यांन के प्रागर । ऊधो चतुर्भुज अरु माधो कांणी। रइयो कहै राम की वाणी ॥७२
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