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मनहर
छन्द
लोपो नांही रामरेष प्रीति सेतो पूज्यो भेष,
इंदव कलिकाल में निहाल भये, प्रहलाद मिले प्रहलाद की नांई । छन्द उदार अपार दया सनमान, इसी विधि सों रिझिए जिन सांई । शील सन्तोष निर्दोष निरम्मल सन्तन सों न दई कहु बांई । राघौ कहै गुरू के गुरु. सों, मिलियों मुजरो कियो राम के तांई ॥१०७३
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भक्तमाल
राघौ कहै रामजी निवाहेंगे व्रत साध को ॥ १०७२
ईड
दादूदयालजी के शिष्यों के भजन स्थानों का निरूपण उदाहरण दादूजी दयाल पाट गरीब मसकीन ठाठ,
जुगलबाई निराट निरा विराज हो । वखनों संकर पाक जसो चांदो प्राग टाक,
ast उ गोपाल ताक गुरूद्वारे राज ही । सांगानेर रज्जब जु, देवल दयालदास,
घड़सी कडेलवंशी धरम की पाज ही । दूजरणदास तेजानन्द जोधपुर, मोहन सु भजनीक आसोप निवाज हो ॥१०६८ गूलर में माधोदास विद्याद में हरिसिंह,
चत्रदास संग्रावटि कियो तन काज ही । विहारणी प्रयागदास, डीडवार है प्रसिद्ध,
सुन्दरदास वूसर सु फतेपुर गाजही । बनवारी हरदास, रतिये जंगल मधि, नित छाजही ।
साधुराम मांडोठी में, नौके सुन्दर प्रल्हाददास, घाटडै सु छोंड
मधि, पूरब चतुरभुज, रामपुर वाराजही ॥ १०६६ नराणदास मांगल्यो सु, डांग मांही इकलोद,
ररणत-भंवरगढ़, चरणदास जानिए । हाडोती गंगायचा में, माखूजी मगन भये,
जगोजी भडोंच मधि, प्रचाधारी मानिये | लालदास नायक सु पीरान पटरणदास, फोफले मेवाड़ मांही दीलोजो प्रमानिए ।
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