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परिशिष्ट १
[ २६९ ताहि समै सेवकहु दर्शन को आयो जित,
गुरूजी लगाई कित, स्वामी कही हकीकत शीश चरण दीनो है। राघौ वात छानी नहीं, प्रगट जगत मांही,
नासिक कों मंदिवार पच्छिम को कीनो है ।।१०४३
छन्द
पृ० २०२ मू० पद्यांक ४५८ के बाद
दादूजी के सेवकों का वर्णन छप्पय दादू दीनदयाल के, ए सेवग भूपति भले ॥
अकबर शाह बड़मती, बीरबल बुधि को आगर । खंघार स्यंघ नरायण (भाषर) सिंह, कृष्णसिंह भोज उजागर। ईश्वर कुछवाहोहि, ताहि गुरु दादू भाए।
लाडखांन घाटवै दयाल दादू पधराए। पीथो निर्वाण उर आण धरि, पुनि खींची सूरजमले । दादू दीनदयाल के, ए सेवग भूपति भले ॥१०६४
बाईयां को वर्णन दादू दीनदयाल की, संगति ए बाई तिरी ।।
नेमा के गुरु नेम, तहां गुरु दादू पूजे । रम्भा जमुना जानि गंगा छोडे भ्रम दूजे । लाडा भागां सन्तोषी, राणी हरिजाणी।
रुक्मणि रतनी भलै, गुरू की रीति पिछारणी। जगत जसोधा जस लियो, सीता सान्ति हृदय धरी।
दादू दीनदयाल की, संगति ए बाई तिरी ॥१०६५ पृष्ठ २३५, प०५०८ के बाद
मीठे मुख बचन र कंचन ज्यू क्रान्तिवन्त,
दिपत लिलाट पाट स्वामी प्रहलाद को। हाथ को उदार हरि हेत होते राखे नांहीं,
__ सुध बुध महा सन्त जैसे सनकादि को। भगति को पुंज भगवन्त जु रिझायो जिन,
भूत भविष्य वर्तमान आज्ञाकारी आदि को।
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