SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 338
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट १ [ २६३ गुजरात घटा उत्पन्नि, न्याती नगर जानी। लोदीराम सु तात, लछि जाके बहुवानी। वर्ष बीते दश एक, आप हरि दर्शन दीन्हों। कर सों कर जब गहयो, लाय अपने अंग लीन्हों। जन राघौ सुर-नर-दुर्लभ, सो प्रसाद मुख सों दियो। जग जहाज परमहंस, एक दादू दयाल प्रगट भयो ।।६५८ पृष्ठ १८३ ५० ५५७ के बाद टोका इंदव सीकरी शाह अकबर ने सुनि दादू अवल्ल फकोर खुदाई । छंद भगवन्त बुलाय लये इक साव तूं ल्याव दरव्वड बेरिन लाई । नृप करी तसल्लीम ततक्षन सूजे को भेज दिया तब भाई। राघौ गयो दिन राति प्रभाति यों दादू दयाल को पान सुनाई ॥९७० दादू दयाल चले सुनि के उनके सतिरामजी एक सहाई । सिष सातक संगि लिये सब ही दिन सात में साध पहुँचे जाई । अवल्लि फजल्लि उभै द्विज देखित खोजत बूझत ले गय पाई। राघौ कहे धनि दादू अकबर साखी कबीर की भाखि सुनाई ।।७१ आदि रु अन्त उत्पत्ति की सब वूझी अकब्बर दादू कों भाई। तुम इलम गैब अतीत मोक्कलि मौल न अर्गति कैस उपाई। दादू कही करतार करीम के एक शबद्द में है सब जाई । राघौ रजा दिल मालिक की भई सोर हकीकति हाल सुनाई ।।९७२ छप्पय इम कही अकब्बर शाह देहु दादू को डेरा। तब विप्र विद्यापति कहि सुनो हजरति मन मेरा । इनको मैं ले जाहुँ करों खिजमति सो इलहरगां । तब शाह खुशी है कहो मजब सुनि हमसों कहना। बहुत खूब हजरात जिवै गुदराऊँगा आनिकै। जन राघौ तब रात दिन अति खोजे इन पानि के ।।९७३ द्विज अपने डेरे जाय जावता कीन्हों भारी । नृप विवेक को पुंज बात अति भली विचारी। सब विधि बहुत विछाहना पादारघ परणाध करि । अचवन को कोरे कलश तुरत मगाये नीर भरि । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy