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भक्तमाल मों सुत साथिहिं इन्धन ल्याकर, पीसन पोवन की मम पाई। आवत शिष्य जु पाव नहीं घर, बूझि गये गुरु भीष न पाई ॥७३४
अथ धुंधलीमल को शब्दी लिख्यते 'प्रायस जी पावो' ॥१॥ बाबा आवत जावत बहुत जग दीठा, कछु न चढ़िया हाथम् । अब का प्रावण सुफल फलिया, पाया निरंजन-नाथम् ।।१ 'प्रायस जी जावो' ॥२॥ बाबा जे जाया ते जाइ रहेगा, तामें कैसा संसा। विछूरत बेला मर। दुहेला, ना जारणों कत हंसा ॥२ 'प्रायस जी बैठो' ॥३॥ बाबा बैठा उठी, ऊठा बैठो, 'बैठि उठि जग दीठा । घर-घर रावल भिक्षा मांग, एक महा अमीरस मोठा ॥३ 'पायस जी ऊभा' ॥४॥ बाबा जे ऊभा ते इक टग ऊभा, शम्भु समाधि लगाई। ऊभा रहा ही कौण फायदा, जे मन भरमैं जग माही ॥४ 'प्रायस जो प्राडा पडो' ॥५॥ बाबा. जे प्राडा ते गहि गुण गाढ़ा, नो दरवाजा ताली। जोग जुगति करि सनमुख लागा, पंच पचीसों बाली ॥५ 'प्रायस जी सोवो' ॥६॥ बाबा जे सूता ते खरा विगूता, जनम गया अरु हारयो । काया हिरणी काल अहेड़ी, हम देखत जग मारयो ॥६ 'प्रायस जी जागो' ॥७॥ बाबा जे जाग्या ते जुग-जुग जाग्या, कह्या सुन्या है कैसा। गगन मण्डल में ताली लागो, जोग पंथ है ऐसा ॥७ 'प्रायस जी, मरो' ॥८॥ बाबा हम भी मरणां तुम भी मरणां, मरणा सब संसारम् । सुर नर गण गन्धर्व भी मरणां, कोई विरला उतरे पारम् ।।८ 'प्रायस जी जीवो' ॥६॥ बाबा जे जीया ते मित ही जीया, मारचा ते सब मूवा। जोग-जुगति करि पवना साध्या, सो अजरामर हुवा ॥
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