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________________ परिशिष्ट ? ( परिवद्धित संस्करण का अतिरिक्त पाठ ) मूल मंगलाचरण दादू नमो नमो निरजनं, नमस्कार गुरुदेवतः । वन्दनं सर्व साधवाः प्रणाम पारंगत ।। पृष्ठ २ पद्यांक E के बाद - कवित्त ___ नमो नमो गुरुदेव, नमो कर्ता अविनासी। अनन्त कोटि हरिभक्त, नमो दशनाम सन्यासी ।। नमो जैन जोगेश, नमो जंगम सुखराशी। नमो बोध दरवेस, नमो नवनाथ सिद्ध चौरासी। नमो पीर पैगम्बरा, ब्रह्मा विष्णु महेश । धरनि गगन पाणी पवन, चन्द सूर आदेश । नर-नारी सुर नर असुर, नमो चतुर-लष जीवकों। जन राघौ सब को नमो, जे सुमरे नित पीव कू ॥१० पृष्ठ १४ पद्यांक २६ के बादइदव द्विजं एक अजामिल अन्त समै, जमकै जमदूतनि आन गह्यो। छंद भयभीत महा अति आतुर है, सुत हेत नरायन नाम लह्यो। जब सन्तनि आय सहाय करी, गहि बेत सों दूत को देह दह्यो। 'माधौदास' कहै प्रभु पूरण है, हरि के सुमरे अघ नाहिं रह्यो ॥६३ जमदूत भजे जमलोक गये, जमराय सों जाय पुकार करी । जहां अंग के भंग दिखाय दियो, तहां त्रास की पास उतार धरी। करता हम और न जानत हैं, हम पै अब होत न एक घरी। 'माधोदास' कहै अघ मेटत हैं, सोई दीन अधीर न सन्त हरी ॥६४ जमराय कहै जमदूतन सों, तुम बात भलो सुनल्यो अब ही। जहां भगत के भेष की बात सुनो, वह मारग जाहु मतै कब ही। हरि के जन सों कोई कोप करे, हरि देत सजा ताकों जब ही। 'माधोदास' को पास विश्वास यह, हरिराय की टेक सदा निबही ॥६५ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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