SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 289
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २१४ ] राघवदास कृत भत्त माल मूल छपै प्रेम बधायौ पुंग सन, नृतक नरायनदास अति ॥ सबद उचारचौ येह, प्रीति कौ नातौ साचौ। गावत पद मैं गरक, मदन मोहन रंग राचौ । नृत्य और ऊ करै, यह गति कोऊ न ल्यावै । देसी त्रिभंग बताइ, लिख्यौ चित्रांम लखावै । प्रगट भई हंडिया-सराइ, राघो मिलिया प्रांनपति । प्रेम बधायौ पुंग सन, नृतक नरांइनदास प्रति ॥४५५ टीका इंदव नृत्य करै हरि के मुख आगय, देसन मै रमि है जन भोरै। छंद जाइ रहे हडियाह सरायहु, नांव सुन्यौ सु मलेछहु मोरै। साध महाजन बोलि पठावत, आत गुनी इन ल्यावहु पीरै। प्राइ वही तुम बेगि बुलावत, सोच भयौ वह नीच अधीरै ।।५८३ नृत्य करौं न बिनां प्रभु नेमहि, सेवन वा ढिग क्यूं बिसतारै । ऊंच सिहासन दाम धरी, तुलसी सन देखि रु गांन उचारै । मीरहु बैठि लखै नहि झांकत, स्यांम लगें द्रिग रूप निहारें। वार न चाहत है कछु औरन, प्रांन चढ़े कर देत न डारै ।।५८४ रुपै लक्षन उज्जल स्याम के, येते जन बहु देत हैं। १छीत स्यांम २गोपाल, ३गदाधर ४नारद ५कन्ह र । ६वछर्पतल ७हरिनाभ, अनंतानंद कुवर बर। १०स्यांमदास११जसवंत,१२कृष्णजीवन१३स्यामबिहारी। १४बोहिथरांम १५दीनदास, मिश्र १६भगवान जनभारी। १७हरिनारांइन गोसू, १८रांमदास १९गोबिंद मांडल हेत है। लक्षन उजल स्यांम के, येते जन बहु देत है ॥४५६ जगमग तूं न्यारे भये, जे जे भजबा जोगि है॥ १रांमरेंन रजैदेव, ३बिदुर ४उधव ५रघुनाथी । ६वांमोदर ७सोढ़ा, ८दयाल गंगा मथुरा थी। कुंडा १०किंकर ११परसरांम, १२परमानंद १३मोहन । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy