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राघवदास कृत भक्तमाल कंचन थार चली कर लै करि, प्रेम सु संत परूंसि जिमाये । देखि सनेह सु भीजि गये जन, नैन निमेख लगै न लगाये। पांन चबाइ र चंदन लेपत, स्यांम कथा परसंग चलाये । सैर सुनी सब देखन आवत, पेखि लिख्यौ नृप लोग पठाये ॥५७१ रांनिय लाज तजी परदा घर, आइ र बैठत मोडन माहीं। मांनस कागद भेजि दिवांनहि, भूपति बांचत अागि जरांहीं। आइ गयौ सुत प्रेम सु ताछिन, भाल तिलक सुमाल गरांहों। भूपहि जाइ सलाम करि चलि, मोड़िय के सुनि सोच परांहीं ॥५७२ रोस भरयौ नृप भींतरि जावत, पूछत सो नर बात बखांनी। तौ हम मोडिय मांनि कह्यौ सुख, भाव र भक्ति तबै उर आंनीं। मातहि कागद देत भयौ करि, यो हरि भक्ति तजौ मति मांनी । मोडिय को नृप कैत सभा मधि, है अब मोडिय जौ मुम ठांनी ॥५७३ यौं लिखि भेजत मानस हाथिहि, मातहि जाइ दयो उनि बांच्यौ। रंग चढ्यौँ सुत के परसंगहि, बार मुडाइ र भावहि सांच्यौ। सेवन पाक करें निसि जावत, प्रांनि प्रभूतरि गांव न जाच्यौ । भूपति अन्नि तजे लिखि देवत, स्यांम निपुत्र भई हित राच्यौ ।।५७४ मानस प्राइ दयो उर का सुत, बांचि खुसी हुत देत बधाई। बाज बजाइ बटावत है धन, काहूक जाइ र भूप सुनाई। भूपति पूछत लोग कही सब, मोडिय मात भई सुत भाई। भूप सुनी दुख पाइ चढ्यौ खिजि, बैर भयौ उत होत चढाई ।।५७५ राखि लियो नृप कौं समझाइ र, लोग भलां सुत जाइ लखाई। कैत भयौ तन खोत बिषै लगि, स्यांमहि काम लगै सुखदाई। मांगि लई परि पाई दई तुम. भूप चल्यौ निसि कौं मन आई। पासि गयौ गढ़ आइ मिले नर, बात कही सब चिंत उपाई ।।५७६ म्हैलहि बैठि बुलावत मंत्रिन, नांक कट्यो अब लोहु निवारें। वाहु मरै र कलंक न प्रांवहि, को मतिवंत बिचारि उचारे । पिंजर सीह छुड़ावहु मारहि, दावहि बात नहीं यह सारै। होत खुसी सब छोड़त दौरत, कैत खवासि नृस्यंघ निहारें ॥५७७ सेवत ही प्रभु नैंन लगे छबि, बोल सुन्यौं उत कौं द्रिग ढारे। कठि करयौ सनमान भलै मन, भाग बड़े नृस्यंघ पधारे।
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