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राघवदास कृत भक्तमाल
१८8 ] मनहर
दादूजी के पाटि तप्यौ गाइये गरीबदास,
जाकै पासि रिधि सिधि अनबंधी प्रावई। गोबिंद गुनांनबाद प्रादि ऊंकार-नाद,
छबिसौं छतीस राग ग्रंधब ज्यूं गावई । नारद ज्यूं बीनकार जग मधि जै-जै-कार, . गुपत गुनचास तान प्रगट बजावई । राघो जारणी राम रीति हरिदै हरिजी सूं प्रीति,
___ भगति को पुंज भगवंत जी कौं भावई ॥३६४ दादूजी सुवन सूरबीर धीर सापुरस,
गरीबनिवाज यौं गरीबदास गाइये । जाको जस कहत सुनत सुधि बुधि बढे,
.. रिजक फराक होत ग्यांन ध्यान पाइये। हिकमति हुनर हकीम लुकमान के से,
अति ज्ञांनी गाजी म्रद नितिही मनाइये । तन मन धन अपि रामजी रिझायो जिन,
राघो सोचै राति दिन सो' व क्यूं' रिझाइये ॥३६५ दादूजी के पाटि दीप गाइये गरीबदास,
जाकै पासि रिधि सिधि दै-दै-कार देखिये । बक्ता जैसे व्यास मुनि भजन प्रहलाद पुनि,
नरन मैं नारद ज्यूं गुनकौं बसेखिये । भक्ति कौ पुंज भगवंत रच्यो भुव परि,
रहै तिको सारौ सनकादिक मैं लेखिये। राधो धोरी भ्रम धुज प्रसिधि प्रवीण पुंज',
__ गुरकै पछोपै गरवाई प्रति पेखिये ॥३६६ दादूजी के पाट परि गाइये गरीबदास,
___ जाकै पासि दिल्लीपति द्रसन कौं प्रावई । प्रीषम की समैं महा तृषा जु तरल लगी,
सब ही को चित भगी घटा बरखावई।
१. सोबकू।
२. पूज।
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