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चतुरदास कृत टीका सहित
[ ११ चाकर हैं जिनके उन सेवत, जारत कौंन ब वौह जरांही। देह छुटी हनु राम पठावत, दाहत धूम सु भूत तिरांही ।।४५८
जमलजी को टोका जैमल मेरत पैल हतौ नृप, पूजन सू हित और न भावै। है घटिका दस को वृत बोलन, आइ कहै कछु ठौर मरावै। भ्रात मंडोवर के यह भेद, लयौ चढ़ि आवत मात सुनावै । स्यांम करै भल बाज चढ़े हरि, मारि दयौ दल से सुख पावै ॥४५६ हाफि रहयौ हय प्राय र देखत, वाहरि देखहि भ्रात पर्यो है। कौ तुम्हरै इक स्यांम सिरोमनि, मारि दयौ दल चित हरयौ है। तौहि मिले हमतौ अति तरसत, जांनि लयो प्रभु आप ढर्यो है। बूझि खिनांवत वै पन धारत, कष्ट दयौ कहि सोच कर्यो है ॥४६०
ग्वाल-भक्त की टीका ग्वाल भयौ इक संतन सेवत, हाथि चढे सब साधन देव। प्राय गयौ पकवान धयो बन, ढील लगी इक भैसि न लेवै। जांनि लइ घरि मात कही फिरि, है घृत लै करि ब्राह्मन सेवै। धौं स दिवारिहु हांस धरे गरि, जाम लये घर आतह सेवै ॥४६१
श्रीधर-स्वामी की टीका. अवसथा बरनन टिप्पण भागवतं करि है वह, जांनिहुं श्रीधर हे बिवहारी। जात चले मग चौर लगे कहि, कौंन सहाइक, औधिबिहारी। कोइ नहीं बन मारि डरौ इन, है कर आयुध पात खरारो। प्राय कही घर स्यांम स को हुत, हे प्रभू त्यागि दई बिधि सारी ॥४६२
मूल भगवंत भक्त पोखें फिर, ज्यौं बच्छा संग गाइ है ॥ दरबि रहत इक भक्त, तास के संत पधारे । प्रभु बटाऊ होइ, खुसे हरिजन 4 हारे। भरन साखि गोपाल, साथि खुरदहा सिधाये।
रामदास के धांम, द्वारिकानाथ लुभाये। छेक सेल को अनुगतन, बलि बंधन बपु खाइ है। भगवंत भक्त पीछे फिर, ज्यूं बच्छा संगि गाइ है ॥२९४ ।
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