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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [ १४३... काढि लयो खग मारन ऊठत, सागर बाज दयो सुअ वेसा। रावन मारि बिहाल करौं खल, सीत ही ल्याइ धरौ हग पेंसा। रांम र ज्यांनकि आय मिले काह, नीचहि मारि पठ्यौ दिबि देसा। सोच गयो सुनि खेम भयो मनि, रूप निहारन फेरि निवेसा' ॥४१६ लोला अनुकरन तथा रनवंतबाई की टीका इंदव नीलचलं सु भयो अनुकरन हु, है नरस्यंघ हिनांकुस मारयौ। छंद दोष कहै जन कैत अवेसहि, सौ दसरत्य करयौ पन पारयो। बांम हुँती इक स्यांम लगी मति, पाप सुन्यौ न कह्यौ सुत धारयौ। दांम जसोमति वांधि दये सुनि, प्रांन तज्यौ मनु ऊपरि वारयौ ॥४२० छौ । प्रसाद अवगि इक भूप नैं, सू हस्त काटि पठयो चरन ॥टे० छंद टेर सुनी सिलपिले, प्रीति लगी प्रभूजी प्रायो। संत रखे दिन च्यारि, मात सुत कू बिष पायो। क मा केरौ खीच लयौ, हरि प्राइ सवारे । साह श्रीधर बचे, धनुष धर दै रखबारे। रघवा जै जै जगत गुर, भक्तबछल असरन-सरनं । प्रसाद अवगि इक भूपन, सू हस्त काटि पठयो चरन ॥२६१ पुरषोतमपुरबासी राजा को टीका इंदव जाजिरे अवज्ञ सु भूप प्रसाद हि, हाथ कटावत यौं जू भई है। छंद चौपरि खेलत हौ हरि भुक्तहु३, दै जन लै कर बांम छई है। जात रिसाइ र लै परसादहि, भूप गयो गृह देखि नई है। पात नहीं अन काटि डरौ इन, पंडित बोलि र बूझि लई है ॥४२१ हाथ सु काटत कौंन अब मम, पूछत है सचिवै दुख को जू । भूत डरावत मोहि झरोखन, दै कर सौर करै निसि सो जू।। मैं ढिग सोवत आपन गौवत, पांनिहि दूरि करौ न डरो जू । भूप कहै भल चौकस राखत, ऊंघ तज' नृप काढ़ि करो जू ॥४२२ काटि डरयो कर सो पछितावत, भूप कही वृत यौंह बिगारी। भेज दये जगनाथ पुजारिन, हाथहि ल्याइ बुवो गुलक्यारी । १. जिवेसा। २. जानि। ३. भक्तिहु । ४. हुई है। ५. विजा। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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