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चतुरदास कृत टीका सहित
[ १४१ इंदव भर भार तज्यौ भ्रथरी सगरौ, अगरौ पिछरौ बनहीं कछु सांसौ। छंद गह्यौ अनुराग दुती न सभाग जु, क्षीन सरीर स लोही न मासौ। . ___मनसामनजीति करी हरि प्रीति,बैराग को रीति सुमांगि भिक्षा करही कोयौ कांसौ
राघो कहै गुर गोरख सु मिलि, यौं कीयों माया मोह को नासौ ॥२८४ लौ गोपीचंद मा ग्यान सं, त्यागौ देस बंगाल ॥
रांणी सोला-सत्त, बहुरि बारा-सै कन्या। हय गय नर कुल बंध, जात कापै सो गंन्या । होरा कंचन लाल, जड़ित मांणिक अर मोती। सिंघासहनं हादि दिपत, बोलत धुनि सोती। पाव जलंध्री परस . ते, राघो जांनि जंजाल ।
गोपीचंद मा ग्यांन तूं, त्यागौ देस बंगाल ॥२८५ मनहर मात देखि गात अश्रुगात उर फाटि रोइ,
सूरति सहारी न परत गोपीचंद को। प्राकृत करत जल बूंद परी पीठ परि,
माताई रोवती निजरि वा नरद' की। हाइ हाइ करत हजूरि गयौ हाथ जोरि,
कौन चूक मात मेरी बात कही ज्यद की। बात यह तात तेरौ गात असौ हौ तौ सुनि,
राघो कहै राम बिन देही भई गद्द की ॥२८६ . चरपट के चरचा रहै, येक निरंजन नाथ को ॥ अलख आदि अनादि भजत, सौ सुख के पाले। काम क्रोध पर लोभ, मोह दुबध्या निरवाले । जत सत ग्यांन बबेक, जोग समाधि परांइन । कुंभक अष्ट ही साधि, भिदिया षट-चकरांइन । गुर गोरख सिर धारिक, सभा सुधारी साध की।
चरपट के चरचा रहै, येक निरंजन नाथ की ॥२८७ इंदव ग्यांन को पुंज मिल्यौ गुर गोरख, यौ प्रिथीनाथ त्रिलोकी तिरे हैं। छंद अँड अकब्बर सूं भइ आगर, दे अजमत्ति यौँ साहि डरे हैं। १. निरंद की। २. को।
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