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राघवदास कृत भक्तमाल
तजीजे ।
मनीजे ।
करीजे ||२७४
भारी ।
होइ उदास भरै उर सास, गई पति पास बहु नहिं आछी । मान त अब फेरि गिनें कब, केति कहौ फिरि प्रात न पाछी । रोस करचौ नृप ठौर जुदी दइ, रीभि लई वह नांच न काछी । नृत्य करै उर लाल करें', सत-संग बरै सब है जन साछो || २७३ नणंद कहै सुनि भाभिहि, साधन संग निवारि भजीजे । लाजत है नृप तात बड़ौ कुल, लाजत द्वै पख बेगि संत हमारहि जीवन प्रांन-स, तारन द्वौ कुल सत्य जाइ कही तब भैर पठावत, लै चरनांमृत पांन सीस नवाइ र पीत भई बिष, संतन छोड़न है दुख भूप कहै भृति चौकस राखहु प्राइ कनै जन बोलत मारी । स्यांमहि सौं बतलात सुनी तब, जाइ कही अब हैस तयारी | सो सुनिकें तरवारि लई कर, दौरि गयो पट खोलि निहारी ।। २७५ बोलत हौंस गयो कत मांनस, देहु लखाइ न मारत तोही । येह खरे कछू नांहि डरे चित, लेत हरे किन बाहत मोही । भूप लजाइ रह्यौ जड़ होर र ऊठि गयो तजि के उर छोही । देखि प्रताप न मानत प्राप, रहै उर ताप करें हरि वोही ॥ २७६ संतन भेष करयौ बिषई नर, आइ कही मम संग करीजे । लाल दई यह आइस जावहु, मांनि लई अब भोजन लीजे । सेज बिछावत साध सभा विचि, टेरि लियौ तब कारिज कीजे । देखित ही मुख सेत भयो पगि, जाइ न यौ अब सिष्ट मनीजे ||२७७ भूप कब्बर रूप सुन्यौ प्रति, तांनहि-सेन लिये चलि आयौ । देखि कुस्याल भयो छबि लालहि ऐक सबद्द बनाइ सुनायौ । जा बृज जीउ मिली पनहौ तिय, देखत नैं मुख ताहि छुड़ायौ । कुंजन कुंज निहारि बिहारिहि प्राइस देस बनें बन गायौ ॥ २७८ भूपति बुद्धि असुद्ध लखी अति द्वारवती बसि लाल लड़ाये । पेठि जलंधर होत भयौ नृप, जांनि महादुख बिप्र खिनाये । लै करि बहु मोहि जिबाबहु, बेगि गये समचार सुनाये । हो (त) न बिदा चलि ठाकुर पैं मुख, मांहि लई तुछ चीर रहाये ||२७६
१. धरं ।
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