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चतुरदास कृत टीका सहित
[ ९९ मोरां बाई का बरनन : [मूल] छथै लोक बेद कुल जगत सुख, मुचि मीरां श्री हरि भजे ॥
गोपिन को सी प्रोति, रीति कलि-कालि दिखाई। रसिकराइ जस गाइ, निडर रही संत समाई। रांनै रोस उपाइ, जहर को प्यालो दीन्हौं ।
रोम खुस्यौ नहीं येक, मांनि चरनांमृत लीन्हौं । नौबति भक्ति घुराई के, पति सो गिरधर ही सजे ।
लोक बेद कुल जगत सुख, मुचि मीरां श्री हरि भजे ॥२१४ मनहर रामजी को भक्ति न भावं काहू दुष्टन कौं,
मीरां भई बैष्णु जहैर दीन्हौं जांनि कैं। रांनौं कहै मार लाज, मारि डारौ याहि पाज,
आप करै कीरतन संत बैठे प्रांनि के। प्रेम मधि पीयो बिस पद गाये अह निस,
भै न व्याप्यौ नैंक हूं न लीन्हौं दुख मांनि के। राधो कहै रांनौं मुखि बैरी श्रब राजलोक,
मीरां बाई मगन, भरोसे चक्रपांनि के ॥२१५
छंद
टीका इंदव मात पिता जनमी पुर मेड़त, प्रीति लगी हरि पीहर मांही। छंद रांनहि जाइ सगाइ करावत, ब्याहन आवत भावत नाही।
फेर फिरावत वा न सुहावत, यौं मन मैं पति साथि न जांहीं। देन लगे पित मात अभूषन, नैन भरे जल, मोहि न चांहीं ॥२७० द्यौ गिरवारिहि लाल निहारन, बेस अभूषन बेग उठावौ। मात पिता-स सुता अति है पृय, रोय दये प्रभु लेहु लड़ावौ। पाइ महासुख देखत है मुख, डोलहि मैं बयठाइ चलावौ। धांमहि पौंचत मात पुजावत, सास करावत गंठि-जुरावौ ॥२७१ मात पुजाइ लई सुत पैं पुनि, पूजि बहू अब सास कही है। सीस नवै मम श्री गिरधारिहि, आन न मानत नाथ वही है। होत सुहागरिण याहिक पूजन, टेकत जौ सिर नाइ मही है। येक नवै हरि और न नावत, मांनत क्यू नहि बुद्धि बही है ॥२७२
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