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________________ ९२ 1 राघवदास कृत भक्तमाल बूझत चाकर नांहि समा तव, काहु कि नांहि भई यम सेवा। स्वामिन के तुम ही लगते कछु, साच कहैं हम जानत भेवा। चाकर थे इकठे नृप के, बिगरी इन सू हम मारन देवा । जीवत राखहु काटि करौ पगु, वा गुन कौं अबहू भरि लेवा ।।२४४ भूमि फटीस समाइ गये ठग, देखि भगे चलि स्वामिप आये । बात सुनी तब कांपि उठ्यौ तन, हाथ र पाव मले निकसाये। होइ अचंभ कहे नृप पैं भृत्य, स्वामिन पासि गयौ सुख पाये। सीस धरयौ पग बूझत अांनि र, बात कहौ सत मो मन भाये ।।२८५ टेक गही नृप सत्य कही जन, जांनि अमोलिक धारि लई है। अौगुन कौं गुन मानत जो जन, सो सबही बिधि जीति भई है। संत सुभाव तजै न सहै दुख, छोड़त नीच न नीच मई है। नांव लख्यौ जयदेव किंदूबल, नाथ रहो इत भक्त छई है ।।२४६ जा करि ल्यात भयौ पदमावति, स्वांमि मिलावत आवत रांनीं। भ्रात मुवो तिय होत सती किन, अंग कटे इक डांकि परांनीं। भूप तिया अचरिज्ज करै यह, नांहि करै फिरि वा समझांनीं। या परकार कि प्रीति न मानत, देह तजै पति प्रांन तजांनी ।।२४७ आप इसी इक भूपति सू कहि, स्वामि छिपावहु प्रोतिहि देखौं । नींच बिचारत अंतर पारत, मांनि तिया हठ यौं अबरेखौं । स्वामि मिले हरि प्राइ कही इक, सोच करे सति मैं नहि लेखों। क पदमावति क्यू तुम रोवत, वै सुख सू अपने मन पेखौं ॥२४८ बात बनी न तिया सरमावत, बीति गये दिन फेरि करी है। जांनि गई पदमावति पारिष, लेत कही सुनिक-ज मरी है। स्वेत हुवो मुख भूपति देखत, आगि जरौं अर यह पकरी है। ठीक भई तब स्वामि पधारत, देखि मुई कहि इच्छ हरी है ।।२४६ भूप कहै जरिहौं अनि बातन, ज्ञान सबै मम छार मिलायो। स्वामि कहै बहु मानत नांहि न, अष्ट-पदी सुर देव पुज्यायो । भूप बहौ२ सरमावत चावत, घात करौं कछु भाव न आयो । आप करयौ सनमान पधारत, किंदुबिलै परचा हु सुनायौ ॥२५० १. राखत । २. छहौं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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