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________________ चतुरदास कृत टीका सहित [६९ काटि सरीर दयो भक्ष स्यंघ कौं, पैज रही कृरणदासं की भारी। प्यंड ब्रह्मण्ड स्थावर जंगम है, श्रब मैं बिस्व रूप बिहारो। संतन को श्रबस्स दयो जिन, ज्यौं तन सौंपत नाह कौं नारी। राघो रह्यौ गलतै गलतांन ह्व, राम अखंड रट्यौ इक तारी ॥१५३ टीका जा सिर हाथ दयो न लयो कछु, राज दयो उन भूप कलू कौ । डूंगर ब्यौर मिले सुत मातहि, दे हरि पूजन संत सलू को। थार जले बिपरी सु लई सुत, भोग बिना दुख पात हलू कौ। मारन कौं तरवारि लई जन, वोट लई धन देत मलू कौ ॥१७२ भूपति पुत्र भगत भयो भल, संत सलाधि नहीं जन असौ। साध तिया ग्रभ दे जुग पातलि, बालक है गुर आप कहै सौ। भेष धरयां इक जूतन बेचत, भूप कहा कर जोरि हरै सौ । त्याग करौ जग होइ बुरौ धन, देर रिझावत पाइ परौ सौ ॥१७३ मूल पैहारी गुर धारि उर, सिष इते भये पार सब ॥ अग्न कोल्ह अरु चरण, नराइण पुदमनाभ बर। केवल पुनि गोपाल, सूरज पुरषा पृथु तिपुर । टीला हेम कल्यारण, देवा गंगा सम गंगा। बिष्णदास चांदन, सबीरां कान्हा पुनि रंगा। जन राघो भगवंत भजि, सिर से डारयौ भार अब । पैहारी गुर धारि उर, सिष इते भये पार सब ॥१५४ स्वइंछा भीषम गबन, त्यू कोल्ह करण त्याग्यौ सरीर ॥टे० राति दिवस हरि भज, पलक नहीं अंतर पारे । जेते प्रांरणी भूत, नाइ सिर पाप निवारै। नाग. इसे त्रिय बार, जहर नहीं चढ्यौ लगारा। सांखि जोग मजबूत, चले व दसवै द्वारा। राघो बल परब्रह्म कै, सुत सुमेर दे सरस धीर । स्वइंछा भीषम गबन, त्यू कोल्ह करण त्याग्यौ सरीर ॥१५५ ईदव कोल्ह करण सरण संम्ररथ के, यौं परमेसुर पैज सुधारी। छंद काम न क्रोध न मोह न मंछर, नृमल ह निज प्रात्म तारी। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003832
Book TitleBhaktmal
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRaghavdas, Chaturdas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1965
Total Pages364
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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