________________
छंद
६४ ]
राघवदास कृत भक्तमाल मात पिता से डरत, रिकत ऊमरा कढाये। भक्त भाव सौं भजे, और तै बधे सवाये । राघो अति अचिरज भयो, बिन बाहें निपजे सुरणे।
संतन के मुखि बाहि के, धनै खेत गोहूं लुणे ॥१३७ मनहर गाड़ी भरचौ बीज बीचि संतन कौं बांटि दयौ,
अस रद्यौ ध्यान तिहं लोक धनां जाट कौ। पारौसी के खेत को करार कीन्हौं हारिन तूं,
हाथ मारि लयो जन कौल कीयो काट को। गेहूं लगे ठौर' कछू वोरन कौं नांहीं और,
ऊमरा कठाये डर मान्यौ राज हाट को। राघो कहै खेत हरि हेत अति नीपज्यौ जु, दिन दिन बढ़त प्रवाह पुनि ठाठ कौ ॥१३८
[टोका] मत- खेत कथा कहि दी सब राघव, फेरि सुनौं इक पैल भई है। गयंद बैसनु ब्राह्मन सेव करी घरि, देखि ठरयौ मन मांगि लई है। छंद गोल असंम उठाइ दयो वह, लेत भयो अति बुद्धि दई है।
भोग लगावत आड करावत, गास न खावत चित नई है ॥१६४ पाइ परै विनतीह करै तजि, भूख मरै अड़ि के जु पुवायो। रोटि न ल्यावत नित्य जिमावत, जोरहि२ पावत यौं मन लायो। कोउ खुवावत वाहि रिझावत, गाइ चरावत यौं प्रभु भायो। आइ फिरौं द्विज देखत नैं कछु, बात कही सब रांम दिखायो ॥१६५ गाइ चरावत देखि खुसी द्विज, भाव भयो जल नैन ढरै हैं। धांम सिधारि सु राम रिझावत, आय हुवा जिम रीति करै है। रीझि कही हरि जाहु धनां गुर, रामहि नंद करौ सु सिरै है। जाइ भये सिष कंठ लगावत, काम करै घरि ध्यान धरै है ॥१६६
सैनजो को मूल छप [जगत मांहि यह प्रगट है, सैन सरम राखी हरी ॥टे०]
सुरिण घरि आये संत, भक्त इक बड़ौ हजामी।
टहल करी मन लाइ, जांनि के अंतर-जांमी । १. गौर। २. डोरहि ।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org