________________
चतुरदास कृत टीका सहित
[ ५३ टोका इंदव मांनि अकासहि बोल भये सिष, जाइ परे मग न्हांवन जावै । छंद लागत ठौकर रांम कह्यौ सिर, हाथ धरयौ इतनौं यह चावै।
भक्ति करै गुर-भाव धरै जन, पूछत है उन नावं बतावै। स्वामि सुनि' तब बेगि बुलावत, सिष्ष करयौ कब भांति बतावै ॥१०३ पाव लग्यौ जब राम कह्यौ तुम, मंत्र वही तिस बेदहि गावै । खोलि मिले पट मांनि सचौ मत, भक्ति करौ तत यौं समझावै । जाइ वुनै दुवटी हि भजै हरि, येक करै घर काम चलावै। बेचत आइ मगी अध फारत, धौं सब ही सबलै मन भावै ॥१०४ मात तिया सुत भूख मरै घरि, आप लुके कहूं धांम न धांन । सोच परयौ प्रभु भक्ति करै जन, खांड गहूं घृत बाल-दि आने । तीनि दिनां जब बीति गये उन, केसव नांखि दई घर जाने । मात कहै पकरै दरबारहि, लेत नहीं सुत येक न मां ॥१०५ च्यारि गये जन ढूंढि र ल्यावत, आइ सुनी हरि जांनत पीरा। बैठि बिचारत आप बिसंभर, न्यौंति जिमावत संतन भीरा। छोड़ि दयौ बुनबौ प्रभु गावत, बिप्रन क्रोध करयौ तजि धीरा। पाइ बिभो निति सुद्र जिमावत, जांनत मैं हम कौंन कबीरा ॥१०६ जात रहौ कित जांउ कहौ किम, राम भजौं अब बाट न मारी। मांन करयौ उन मोड़न कौ, अपमान करचौ हम देत जिवारो। जात बजार लगै अब हाथि र, हो तुम मांहि उपाधि निवारी। ल्याइ हरी रिधि दै सब बिप्रन, होत खुसी जन कीरति कारी ॥१०७ रूप करयौ हरि बांह्मन को तुम, जाहु कबीरहि बांटत भाई । भूख मरै मति ढ़ील करै जिन, जात घरां सिर देत अढाई । धांम गये जब देखि खुसी मन, नौतम खेल दिखावत राई। लै गनिका सब देखत कीड़त, भीर मिटांवन हासि कराई ॥१०८ साध दुखी लखि साख तहां सत, फेरि बिबेक करचौ कछु औरै । जात सभा नृप मांन करयौ न, तब इक ख्याल करै जल ढौरै। पूछत भूपति कारन कौंनस, पंड जरयौं जगनांथहि ठौर।
भूपति मानस भेजि दयौ उन, आइ कही सब सांचहि चौरै ॥१०६ १. मुनि। २. कच्छ । ३. पंडा।
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org