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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
[२] तसु सुह-वासरि सालिभद्द इय रइयं नामू माया-पियर-निय-बंधवाण संगमि अभिरामू । वद्धइ जिव जिव चंदु जेव सो जणयाणदणु तिव तिव वियसइ कुमुय जेव भद्दा हरिसिय-तुणु ॥६ अह परिणाविउ सालिभदु बत्तीस कुमारी तिहुयणि सयल वि जाह नत्थि पडिछंदउ नारी । चरम-जिणेसर-पासि दिक्ख लेऊ गोभद्द वि देउ हुयउ दिव-लोइ करइ मण-चिंतिउ सव्वु वि ॥७ देउ सु पूरइ देव-तणउ नितु नितु आहारु भज्जा-सहितहि नियय पुत्त आभरणह भारु । अच्छर-गण-सउँ इंदु जेम विलसइ तिम निच्चू कामिणि-जण-सउ सालिभदु अगणिय-निय-किच्चू ॥८
घात __ पुत्तु जायउ सुह-मुहुत्तम्मि वद्धाविउ सेट्रि तहिं दियइ दाणु दालिद-खंडणु । तसु पुत्तह नामु किउ सालिभद्द इह पाव-खंडणु ॥ विज्जा सयल वि पाढियउ परणाविउ वर नारि । व्रतु लेइवि गोभई गउ सग्गि पत्तु सुह-पारि ॥९
तत्थ समागय वणिया लेऊ रयण-कॅबल रुइ जिय-रवि-तेऊ । चहुटइ लखु लखु मूलु अलहंता पत्ता सेणिय-भूमि वयंता ॥१० लखु खु मूलु दियइ नहु राऊ तीह तणइ मणि हुयउ विसाऊ । सालिभद्द-घर गुरु पिक्खेविणु पहुता हरिसिण पूरिय-मण-तणु ॥११ सयल कॅबल भद्दा गिन्हेई लखु लखु तीह तणउ मूलु देई ।
भद्दा कंबल सवि फाडेई भज्जह पाउंछणय करेई ॥१२ ।
७. ब. संगामिउ. ११. २, ब. विसामो, ज. विसाउ. १२. १. ज गेण्हेई, ४. ब. पाउंछणह.
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