________________
प्राचीन गुर्जर काव्य संचय जेम इंदिहि २ लच्छि-विच्छड्डि ।। नेऊण सोवन्नगिरि संति-नाहु जम्म-खणि न्हाविउ ।। तिम गुरुयाडंबरिण सिरि-सुवन्नगिरि[२५०B]-उवरि ठाविउ ॥ जयतसिंह-इंद-प्पमुह इंदहि पहाविज्जंतु । सयल-संघ-दुरियइ हरउ संति-नाहु अइ-कंतु ॥४९ आरुहियउ संति-जिणु(?) सोवनगिरि-सिहरम्मि । तउ जाणीजइ सोवनहि फुल्लिहि फुल्लि[य] भूमि ॥५० फुल्लिय सवि वणराइ' जगि फलिय सवि ऊजाण । जण हरसिय मण ऊससिय वद्धावणा पहाण ॥५१ दिक्खिवि उन्नय-पय-चडिय किर निय सामिय संति । हूई महि ऊसवमयइ जाय न हरिसह अंति ॥५२ गइय अणागम-देसि भय डिंब डमर दुब्भिक्ख । मरु-मंडलि अव वियसिय खेम-कुसल-सिरि-लक्ख ॥५३ जे पिक्खिहि सिरि-संति-जिणु रूवच्छेरय-भूउ । दंतिहि पाणह लेवि तहि नासइ मोहब्भूउ ॥५४ सामि सु संति-जिणिंदु सोवनगिरि-सिरि संठियउ । जण-मण-नयणाणंदु सयल-संघ-दुरियइ हरउ ॥५५ जे सिरि संतिहि कंतु . जत्तुच्छवु भवियण करहि । पगि काँटउ भज्जंतु गरुड-जक्खु राखउ तउ ॥५६ जे संतीसर-वारि नच्चहि गायहि विविह-परि । ताह होउ सवि-वार खेलाखेली खेम-कुसल ॥ [२५१A]५७ एहु रासु जे दिति खेलाखेली अइ-कुसल । बंभ-संति तह संति मेघनादु वि खेतल करउ ॥५८ एहु रासु बहु-भासु लच्छितिलय-गणि-निम्म[वि]यउ । ते लहंति सिव-वासु जे निय-मणि ऊलटि दियहि ॥५९ महि-कामिणि रवि-इंदु कुंडल-जुयलिण जा सहइ । ताम संति-जिण-चंदु अनु इउ रासु वि चिर जयउ* ॥६०
५१. १. वणराय. ५३. २. दुभिक्ख. ५५. १. जिणिदु. २. संठियओ. ५६. १. संतहि. ४. राक्खउ *इति श्रीशांतिनाथदेवरासः समाप्तः ।।
Jain Educationa Interational
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org