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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय रण-तूरि य वजंतइहि नच्चिय हरिस कबंध । चम्म घंट किरि भट्ट घड(?) पढइ य कव्व-पबंध ॥३६
चडतउ दिक्खिवि सत्तु-सिन्नु निय-वलु उहटतउ । रोस-वसिण अइ पिंजरच्छु उट्ठ-उड्डु दसंतउ ॥ निय-दल-सहिउ मोह-राउ चल्लियउ तुरंतउ । संति वि सम्मुहु हुयउ वाम-खंधुप्फालंतउ ॥३७ भिक्खायर जे तुज्झ पेटि मह-भड आवट्टिय । मा नाससि कड्ढिसु ति अज्जु आपणा माँटिय ॥ मोह भणंतउ इसउ संति भणियउ मा वलवलि । रे बोपा(?) करे हत्थियारु हउ भंजिसु तुह भलि ॥३८ तउ पहरंतउ मोह संति ति-करणय-ति-सल्लिण । निज-बलि सहियउ हणियउ तेम उट्ठियउ न जिम पुण । मोह-राय तउ तणइ सिन्नि पडियउ भंगाणउँ । पाछउ अ-जोयंतु सव्वु नासइ उज्जाणउँ ॥३९ वइरिय-वलु नासंतु पिक्खि संतीसरु केडउ । करइ करावइ जमह[२४९B] पासि काहि वि तह तेडउ ॥ कि-वि मायाए उवरि देवि फर रिणि रडविडिया । कि-वि मुहि अंगुलि तिणय लेवि जिण-पाए पडिया ॥४० जीवेवइ जयली (2) के-वि ते घिल्लिणि (?) दाविय । अइ-भयेण कि-वि खाल के-वि छींडी जोयाविय ॥ काहि वि नासंताह भग्ग दसणा तह गोडा । मत्थइ पडियउ अकित्ति-छारु विगलिय सवि कोडा ॥४१ तउ जय-सिरि किरि मुत्तिमंति केवल-सिरि आविवि । उक्कंठिउ सिरि-संति-नाहु आलिंगिउ धाविवि ॥ धाइय तरु तलि लट्ठि छट्टि पोसे सिय-नवमिहि । देवहि जयजय-कारु कियउ कुसुम-वुट्ठी तहि ॥४२
३७. १. सन्नु; उहटतउ. २. पिंछरच्छु. ३. निग'. ३८. ३. भणियाउ. ४. हिंत्थियारु. ३९. २. निर्ग. ३. तणय सन्नि. १. नासय. ४१. २. अय. ४. मत्थय. ४२. २. भालंगिउ. ३. नवमहि.
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