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प्राचीन गुर्जर काव्य संचय एअ-ठाणाउ चालेह लहु पवहणं जा कुणइ रक्खसो तुम्ह बहु भक्खणं' १५ इअ सुणिवि तेहि भीएहि संचारिअंपवह णं जवण-दीवम्मि तं पत्तयं ।१६ तत्थ विक्किणिवि पणि' सलाभो गओ निअ-पुरं कहइ अम्मा-पिऊणं तओ।१७ रक्खसोवद्दवं नम्मयाए दुहं
पुण वि परिणाविओ भुंजए सो सुहं ।१८ जग्गए नम्मया जाव इत्थंतरे पिच्छए नेव तहि पिअयमं परिसरे।१९ विलवए 'नाह हा कंत तं कहि गओ । अ-सरणं मं विमुत्तूण अइ-निदओ ।२० वीससिअ-घाय-महदाव-पज्जालणं सुगुरु-आसायणा देव-धण-भक्खणं ।२१ पुव्व-जम्मे मए किं कयं दुक्कयं अकय-अवराह जं जाइ पिउ मिल्हिडं।२२ पंच उववास काऊण अह चिंतए सरिवि मुणि-वयणु इय अप्पयं बोहए । 'चलइ जइ मेरु उग्गमइ : पच्छिम रवी टलइ नहु पुव्व-कय-कम्मु पुण कहमवी'।२४ धीरविों चित्तमह कुणइ सा पारणं छ-दिणि फलिहि कय-देवगुरु-सुमरणं । लिप्पमउ बिंबु ठावेवि गुह-अंतरे थुणइ पूएइ मणु ठवइ झाणंतरे ।२६ । 'रक्खसुद्दीवु मिल्हेवि जइ गम्मए भरह-खित्तम्मि जिण-दिक्ख गिन्हिज्जए। इय विचिंतेवि चिंधं जलहि-तीरए भग्ग-पोअत्त-संसूअगं उब्भए ।२८ बब्बरे कूलि पोएण वच्चंतओ चिंधु पिक्वेवि पिउ-बंधु तहि आगओ ।२९ नम्मयं पिच्छिउं पुच्छए वईअरं कहइ रोअंत सा वित्तु जं दुत्तरं ।३०
पत्ता संबोहिवि जुत्तिहि पेम-पउत्तिहि वीरदासु तद्-दुह-दुहिउ । पवहणि आरोविउ सीलि पमोईउ बँब्बरि गउ नम्मय-सहिउ ॥३१
वीरदासु तहि कूलि नरेसरि पूइ नमया ठावइ मंदिर १ हरिणी-वेसा तहि निवसेई वीर-पासि दासी पेसेई ।२ प्रवहण-प्रति दीणार-सहस्सू निव-पसाइँ सा लहइ अवस्सू ।३ दासि भणइ 'तुम्हि सामिणि वंछई' वीरु सील-निहि तहि नहि गच्छइ ।४ तेत्ति धणु पेसइ तसु हस्थिहि हरिणि भणइ 'अम्ह काजु न अथिहि ।५ वीरदासु एती कल (2) आणि' भणिति-भंगि तिणि आणिउ प्राणि ।६।। खोभिउ हाव-भाव-विन्नाणिहि न चलिउ जिम सुर-गिरि बहु-पवणिहि।७
१ पणीअं. २ वीससी. ३ धीरवीअ. १ बव्वरे. ५ वईअरं. ६ पमोईउ. ७ बब्वरि. ८. पूईउ. ९ मंदरि. १० सीलु. ११. तत्तिउ.
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