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इंच की है। इसकी पत्रसंख्या ४३२ है । बीच में ताड़पत्रीय शैली का छेद किया हुआ है। इस में खरतरगच्छीय स्तोत्रों का संग्रह बहुत ही अच्छा है। इनमें से कई तो तत्कालीन विनयप्रभ उपाध्याय, तरुणप्रभसूरि आदि की रचनाएं हैं । इसमें से 'उखाणा गर्मित स्तोत्र' हमने पहले प्रकाशित किया था । इसमें लिखी हुई रचनाओं की सूची अलग ४ पत्रों में दी है । 'गौतम रास' सं. १४१२ में रचा गया है और इस प्रति में सं. १४३० में लिखा गया है। अतः यह इस रास की सबसे प्राचीन प्रति है। यों 'गौतम रास' बहुत प्रसिद्ध रचना है। और उसकी सैकड़ों प्रतियां हमारे संग्रह में और अन्य ज्ञानभण्डारों में प्राप्त हैं पर लोकप्रसिद्ध रचना होने से इसकी भाषा में परिवर्तन आ गया है और रचयिता के सम्बन्ध में भी कई भ्रान्तियाँ प्रचलित हो गई है। हमने उपर्युक्त प्राचीन प्रति का पाठ 'परिषद पत्रिका' में कई वर्ष पूर्व प्रकाशित किया था। इस प्रति के ४०८ पत्र तो एक ही व्यक्ति के लिखे हुए हैं और पत्राङ्क १९६ से २०६ तक में 'गौतम रास' लिखा हुआ है । पत्राङ्क २८२ पे लेखनसंवत् तरुणप्रभसूरि के 'वीस-विहरमान-स्तव' के बाद इस प्रकार लिखा है ---
___सं. १४३० वर्षे कार्तिक सुदि प्रतिपदायां । देवस्तवनपुस्तकं । इस प्रति के सभी पत्र सुरक्षित हैं और एक सुन्दर कपलिका में वेष्ठित है ।
५-७. प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रकाशित 'नमयासुन्दरी-सन्धि' और 'दंगडु' पाटण ज्ञानभण्डार की प्रतियों (सूची पृ. १८८ और पृ. २५) से नकल किए गए थे ।' 'केसो-गोतम-सन्धि' की तो बहुत सी प्रतियाँ प्राप्त हैं । इसी प्रकार स्थूलिभद्रफागु' की भी कई प्रतियां मिलती है। . उस ग्रन्थ के सम्पादित पाठ में जिन प्रतियोंका उपयोग किया गया है उनका उल्लेख पृष्ठ ९३ में दे दिया है । विनयचन्द्रसूरि कृत 'नेमिनाथ-चतुष्पदिका' का पाठ डा० भायाणीजी ने फार्बस गुजराती सभा-बम्बई से प्रकाशित 'त्रण प्रचीन गुर्जर काव्यों' से लिया है ।
८. इस ग्रन्थ के अन्त में प्रकाशित 'नवकार-फल-स्तवन' भी बहुत प्रसिद्ध रचना है। इसकी सं. १६६७ की लिखित प्रति हमारे संग्रह में है, जिसका यहाँ उपयोग किया गया है। यों 'गौतम-रास' की भाँति यह स्तवन हमारे 'अभयरत्नसार' आदि ग्रन्थों में पहले भी प्रकाशित हैं ।
९. अन्य रचनाओं में देपाल कवि का 'कयवन्ना वीवाहलउ' और नेमिनाथ धवल, आर्द्रकुमार धवल एक ही संग्रहप्रति में से ली गई है पर उस प्रतिका विवरण प्रति बाहर से मंगवायी गई थी अतः देना संम्भव नहीं रहा ।
१०. जेसलमेर भण्डार की कुछ फुटकर प्रतियों से भी हमने नकलें की थीं। इनमें से एक प्रति में 'गजसुकमाल-रास' मिला था जिसमें बीच बीच का पाठ कुछ त्रुटित था । उसे हमने 'राजस्थान भारती' में प्रका.शत कर दिया था | जेसलमेर भंडार की एक प्रति में 'शांतिनाथरास' अपूर्ण मिला था वह भी इस ग्रन्थ में प्रकाशित किया गया है।
११. पन्द्रहवीं शताब्दी में लिखित एक संग्रहप्रति के कुछ पत्र हमारे संग्रह में हैं जिसमें 'नेमिनाथ-रास' लिखा हुआ है ।
१२ जेसलमेर भण्डार में भी एक संग्रहप्रति के फुटकर पत्र मिले थे जिसमें 'जिनकुशलसूरिरेलुआ' आदि रचनाओं के साथ 'जिनचन्द्रसूरि-फागु' नामक रचना मिली जिसके बीच के पत्र
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