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जाव न पडु निय-घरि ताम्व रह- बुल्लाविभो । 'कहि थूलभद्दिण सरिसु तुडि करि कषणु फल पइँ पाविउ ' ॥ 'सुणि कंति इणि छहि रसहि भोयणु करवि हउँ वीसासिउ । झाणग्गिखग्गि हणेवि भग्गउ ता न सक्किउ नासिउ' ॥७ 'को-वि निय-तणु तविण सोसइ कु-बि य रन्निहि निवसए । किवि को वि पि सेवालु भक्खर सो वि तू आसंकए ॥ जो वेस घरि चउमासि निवसवि सरस भोयण-सत्तओ । तसु थूलभद्दह पाय पणमहुँ जिणि मयण तुहुँ जित्तओ' ॥८
प्राचीन गुर्जर काव्य संचय
७१. पयद. २. पु. ८१. कुविभ, ३. संतउ. ४ महु, मणु. अंत : थूलभद्रमुनि वर्णनाबोली समाप्ताः.
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