________________
७६
प्राचीन गुर्जर काव्य संचय तसु ऊपरि मई मच्छरु कियउ तिणि कारणि मइँ फल पावियउ ॥ तुहु महु गुरु कोसा महु माए हउँ पडिबोहिउ आणिउ ठाए ॥४६ मइ जाणिउ त कियउँ अकम्मू आलि वहिउ गउ माणुस-जम्मू। वेसा कोसा बोल्लइ एहु 'अज्जिउ मुणिवर म-न करि खेऊ ॥४७ चारित्त-रयणु हियडइ धरहि गुरुहु पासि आलोयण लेहि । वहुत्त-कालु संजमु पालेहि चउदह पूरव हियइ धरेहि ॥४८ थूलभद्दु जिण-धम्मु कहेवि देवलोकि पहुतउ जाएवि ॥४९
४६. १. ज धरियउ, ब कीयउ. २. ज प्रामीयउ, ३. ज तुहु गुरु, तुहु महु माया; ब मुहु गुरु, मुहु माया. ४७. २ ज चलिउ गउ, १ ज अज्जि . ४८ १. ब. चारितु २. ज. ब. लेहि, ५ ब. धरेवि. ४९. १. ज. कहेइ; ब कहेई. २. ब जाएवी.
पुष्पिकाः ज. थूलिभदरास समाप्तः, ब थूलभद्दरासः समाप्तः.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
www.jainelibrary.org