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[इक्यानवे]
"संभूत अन्तरात्मा य, आत्मानुभववेदकः। अप्रमत्तदशायोगी, जिनेन्द्राणां प्रसेवकः ।।
श्रुतागम प्रलीनाय, भक्ताय ब्रह्मरागिणे । चिदानन्दस्वरूपाय, सर्वसंघस्यरागिणे ॥
ध्यानसमाधिरक्ताय, विश्ववन्धाय साधते । श्रीमते देवचन्द्राय, पूर्णप्रित्या नमो नमः ।।
(देवचन्द्र-स्तुति) और कहती हूं किवन्दना के इन स्वरों में एक स्वर मेरा मिला लो.............
खरतरगच्छीय जैन धर्मशाला • । पाली (राज.) १० २०३४, वैशाखी पूर्णिमा
सन्त-चरण-रज साध्वी हेमप्रभा श्री
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