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________________ इस क्षमायाचना के स्वर में स्वर मिलाकर मैं भी कहती हूं कि - 'श्रीमद् के जीवनवृत्त का प्रलेखन करने में त्रुटियां रहना स्वाभाविक है, किन्तु मैं उन वात्सल्यमूत्ति, अध्यात्मयोगी, महान् सन्त के परम पावन चरणारविन्दों में श्रद्धावनत हो इस अनधिकार चेष्टा के लिये पुनः पुनः क्षमायाचना कर लेती हूं । वे भी मुझे क्षमा करें । [ नब्बे ] " यच्चासमंजस मिह, छन्द शब्दार्थतो मयाऽभिहित्तम् पुत्रापराधवन्मम मर्षयितव्यं बुधैः सर्वम् ||" श्रीमद् की कीर्ति सर्वभक्षी काल का उपहास करती हुई, दो सदियों से प्रखण्ड रूप से चली रही है और भविष्य में भी चलती रहेगी, यह निर्विवाद है । श्रीमद् जैसे समभावी, गच्छ कदाग्रह से दूर, जिनाज्ञा समर्पित, आगमधर, ज्ञानयोगी एवं कर्मयोगी जगत् में श्रात्मप्रेम के पूर बहानेवाले, जगत् में मंत्री भाव का प्रसारकर श्रात्मसौन्दर्य की झांकी करने वाले महापुरुष का व्यक्तित्व और कृतित्व, अज्ञानांधकार में भटकती हुई श्रात्माओं के लिए प्रकाश स्तंभ ( Search Light) बनकर सदा-सदा के लिए दिशानिर्देश करते रहें, यही मंगल कामना है । वन्दना के इन स्वरों में. अन्त में श्रीमद् के अनन्य अनुरागी प्राचार्य प्रवर श्री बुद्धिसागरसूरिजी के शब्दों द्वारा श्रीमद् के पावन चरणों में श्रद्धा-सुमन अर्पित करती हुई यह इतिवृत समाप्त करती हूं । X Jain Educationa International "ज्ञान दर्शन चारित्र, व्यक्तरूपाय योगिने । श्रीमते देवचन्द्राय संयताय नमो नमः ॥ X X For Personal and Private Use Only X www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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