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________________ - [अंठासी] अनन्य अनुरागी थे। श्रीमद् के साहित्य से तो वे इतने प्रभावित थे कि जनसाधारण के लाभ के लिये श्रीमद् की कृतियों को भारी श्रम पूवक संग्रह कर श्रीमद् देवचन्द्र नामक दो भागों में प्रकाशित करवाई। तथा भाग दो की प्रस्तावना में 'श्रीमद् के व्यक्तित्व और कृतित्व' के बारे में जो भव्य उद्गार निकाले वे यथार्थ होने के साथ साथ उनकी साधुता एवं गुणानुराग के प्रतीक हैं . धन्य है, उन महात्मा बुद्धिसागरसूरिजी को जिन्होंने गच्छ कंदाग्रह से दूर रहकर 'सच्चा सो मेरा' का अनूठा आदर्श प्रस्तुत किया । इसी तरह अध्यात्मयोग साधक, संतहृदय स्वामी जी श्री ऋषभदासजी भी आपको सात्त्विकत्ता पूर्ण तात्त्विक्ता के अत्यन्त अनुरागी थे। श्रीमद् की रचनाओं का अध्ययन कर उन्होंने जो प्रेरणा एवं मार्गदर्शन प्राप्त किया वह उनके ही शब्दों में पढ़िये-- "वे बड़े आगम-व्यवहारी, सच्चे अध्यात्म पुरुष थे और ग्रहत दर्शन को मान्यतानुसार वे बड़े आत्मयोगी पुरुष थे, इसमें कोई शक नहीं।" "श्रीमद् ‘देवचन्द्र' जी को साहित्य-रचना से प्रभु की प्रभुता, समर्पणभाव, प्राशयं विशुद्धि का आधार लेकर, ही मैं आत्मयोग सरोवर में चंचुपात कर रहा हूं। समुद्र के प्रवास में जैसे प्रवहण ही आधार रूप हैं, इसी तरह से इनके प्रवचन रूपी प्रवहण, मेरी प्रात्मयोग साधना में मेरे लिये पुष्टावलंबनरूप है । अगर यह आधार न मिला होता तो इस भयानक भवसागर को पार करने का साहस भी नहीं होता।" - इस तरह आपके ग्रन्थों का रसास्वादन कर कई अध्यात्मप्रेमी, आत्माओं ने आपके चरणों में भावात्मक श्रद्धा-सुमन अर्पित किये हैं और कई हृदय मूकरुपेरण प्रतिदिन अर्पित कर रहे हैं। Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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