SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ सतासी] को चिरजीवी बनाने के लिए अपने अपने ग्रन्थों में आदर पूर्वक इसका उल्लेख करना एवं श्रीमद् की स्तवना करना, कोई सामान्य बात नहीं है । पन्यास पद्मविजय जी जो कि ४५ हजार गाथाओं के रचयिता, 'पद्मद्रह' के नाम से प्रसिद्ध है, उन्होंने उत्तमविजय जी 'निर्वाणरास' में आपके लिए क्या ही भव्य उद्गार निकाले हैं। "खरतरगच्छमाही थया रे लोल, नामे श्री देवचन्द्र रे सोभागो, जंन सिद्धान्त शिरोमणी रे लोल । धैर्यादिक गुणवन्द रे सौभागी। देशना जास स्वरुपनी रे लोल....... पन्यासजी श्रीमद् के लिए जैन सिद्धान्त शिरोमणी एवं "धर्यादिक गुण वृन्द" जसे विशेषण देते हैं तथा उनकी देशना को आत्म स्वरुप का प्रकाशन करने वाला कहा है। पन्यासजी ने जो कुछ कहा उसमें जरा भी अतिशयोक्ति नहीं हैं, क्योंकि वे गृहस्थी में और साधु बनने के बाद भी श्रीमद् के निकट परिचय में रहे थे। उन्होंने जो कुछ कहा वह श्रीमद् के जीवन का साक्षात् अनुभव करके कहा है। मस्तयोगी ज्ञानसारजी ने भी 'साधुपद् सज्झाय' के टब्बे में श्रीमद् को महान् पात्मज्ञानी, वक्ता महापण्डित, महाकविराज आदि विशेषणों द्वारा संबोधित किया है। उन्होंने कहा है कि श्रीमद् को एक पूर्व का ज्ञान था। ऐसे ऐसे महान् विद्धान् एवं ख्याति प्राप्त मुनिभगवन्तों ने जिनकी महत्ता, विद्धत्ता और साधुता की स्तुति की ऐसे श्रीमद को युग प्रवत्तक कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नहीं हैं। ___ इस बीसवीं सदी में भी आपके सद्गुणों को समर्पित गुणानुरागी आत्माओं को कमी नहीं हैं । आज भी सभी गच्छों में आपकी प्रतिष्ठा है। महाविद्धान् अनेक ग्रन्थों के रचयिता, योगनिष्ठ आचार्यदेव श्री बुद्धिसागरसूरिजी तो आपके Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy