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बासठ ] अन्त में गजसुकुमाल दीक्षा ले लेते हैं और प्रभु से शीघ्र ही मोक्ष मिलने का उपाय पूछते हैं। तब भगवान उन्हें एकरात्रि की प्रतिमा स्वीकारने को कहते हैं। भगवान् की आज्ञानुसार शिवरसिक बालमुनि श्मशान में जाकर कायोत्सर्ग, में लीन हो जाते हैं। उनके भावी ससुर 'सोमिल' को जब इस बात का पता पड़ा तो वह बड़ा क्रुद्ध होता है और प्रतिशोध की भावना से मुनि को ढूँढ़ता हुआ वहां पहुँच जाता है। क्रोधावेश में सोमिल भान भुला हुआ था अतः वह पास ही तालाब से गोली मिट्टी लाकर बालमुनि के सिर पर सिगड़ीनुमा बनाकर उसमें जलते हुए अंगारे रख देता है। देह धर्म व प्रात्मधर्म को भलो-भाँति पहिचानने वाले महामुनि की उस असह्य पीड़ा में भी भावना देखिये-- दहनधर्म ते दाह जे अगनि थी रे,
हुँ तो परम अदाझ अगाह रे। जे दाझे ते तो माहरो धन नथा रे
अक्षय चिन्मय तत्त्व प्रवाह रे ।। १४. प्रभंजना-सज्झाय
इसमें विद्याधर कुमारी प्रभंजना के अचानक जीवन परिवर्तन का रोचक वर्णन है। प्रभंजना के स्वयंवर की तैयारी हो रही है। वह एक हजार सखियों के साथ घूमने जा रही है। रास्ते में अचानक सुब्रता साध्वीजी सपरिवार उनको मिलती हैं । शिष्टाचार के नाते कन्यायें उन्हें नमस्कार करती हैं।
कन्याओं का अपूर्व उल्लास देखकर साध्वीजी उन्हें उसका कारण पूछती हैं। तब कन्या कहती है कि
"विनये कन्या वीनवे, वर वरवा इच्छे रे लो।" त्यागी आर्यां को इससे बड़ा आश्चर्य होता है और वे कहती हैं कि
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