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[ अट्ठावन ] सुन्दर सरोदोथी गवातु सांभली ने कोनी अांखोमांथी आंसू नहि टपके ? शब्दे-शब्दे कारूण्य छवायु छ। ११. अष्टप्रवचन माता की सज्झाय
जैसे माता बड़े प्यार से बच्चे का संरक्षण और संवर्धन करती है। वैसे पांच समिति और तीन गुप्ति के पालन से संयम का संरक्षण और संवर्धन होता है। अतः ये प्रवचन-मातायें कहलाती है। इन सज्झायों में समिति-गुप्ति का स्वरूप बतलाते हुए, साधु जीवन के लिये उनका कितना महत्त्व हैं ? इसका आपने बहुत ही आकर्षक ढंग से वर्णन किया है । वर्णन इतना सटीक है कि इसको पढ़ने से श्रीमद् के आत्मज्ञान एवं चरित्र की परिपक्वता का सच्चा अनुभव हो जाता है। इन सज्झायों के रूप में साधु-धर्म का सांगोपांग निरूपण प्रस्तुत कर दिया।
"जननी पुत्र शुभंकरी, तेम ए पवयण माय ।
चारित्र गुण-गण वर्द्धनी, निर्मल शिवसुग्ख दाय ।"
गुप्ति उत्सर्ग मार्ग है और समिति इसका अपवाद है। अपवाद मार्ग का सेवन किस स्थिति में प्रौर कहां तक उचित है, इसका इन सज्झायों में स्पष्ट वर्णन किया है । साधु-जीवन की शुद्धि के लिये इनका निरन्तर स्वाध्याय आवश्यक है।
१२. पंचभावना-सज्भाय
__ श्रुत, सत्त्व, तप एकत्त्व और तत्त्व-ये पांचों भावनायें संयमभाव की प्रबल आधार भूमि है । श्रीमद् ने इन पांचों भावों पर सज्झाय बनाई है जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है। सुप्त चिंतन को जगाने के लिये इसका एक-एक शब्द इन्जेक्शन क काम करता है।
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