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[ उन्तालीस ]
५ - जामनगर में एक जैन मन्दिर को मुसलमानों ने जबर्दस्ती से मस्जिद बना लिया था । मूर्तियों को अवसरज्ञ श्रावकों ने समयसर भूमिस्थ कर दिया था। मुसलमानों का जोर हटने पर श्रावकों ने राजा से मन्दिर पुनः उन्हें दिलवाने की प्रार्थना की किन्तु कोई परिणाम नहीं निकला । सौभाग्य से आप वहाँ पधार गये । श्रावकों ने श्रीमद् के सामने यह चर्चा की । श्रीमद् ने वहाँ के राजा से कहा किन्तु बिना चमत्कार कोई नमस्कार नहीं करता। राजा ने शर्त रखी कि मन्दिर के ताला लगा दिया जायगा । जिसके इष्ट के नाम के प्रभाव से ताला खुल जायगा, उसी को यह मिल जायगा । पहिला मौका मुसलमान फकीरों को दिया गया, किन्तु ताला नहीं खुला । अन्त में जब श्रीमद् की बारी आई और उन्होंने ज्यों ही परमात्मा की स्तुति बोली कि ताला झट से टूट कर गिर गया । सर्वत्र जैनधर्म एवं श्रीमद् की महती प्रशंसा हुई । आत्मा की अनंतशक्ति को जागृत करने वाले महापुरुष क्या नहीं कर सकते ?
६ - योगनिष्ठ आचार्य श्री बुद्धिसागर सूरिजी ने 'श्रीमद् देवचन्द्र भाग - २ की प्रस्तावना में लिखा है कि एकदा राजस्थान में संघ - जीमरण के प्रसंग में, गौतमस्वामी के ध्यान के प्रभाव से प्रापने एक हजार व्यक्तियों की रसोई में प्राठ हजार व्यक्तियों को खाना खिलाया था ।
वस्तुतः संयमी महात्मा जादूगरों की तरह अपनी शक्तियों का जहाँ तहां प्रदर्शन नहीं करते न उन्हें उन शक्तियों का कोई मोह ही होता है। शुद्धात्मदशा के सिवाय जगत् की सारी वस्तुयें उनके लिये तुच्छ हैं । करुणा भावना से प्रेरित हो संघ शासन के लाभ के लिये कभी कभी वे अपनी शक्तियों का परिचय दे देते हैं । अन्यथा नहीं ।
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