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________________ [ इकतीस ] संवत् अठारने आठ में गुजराती थी काढयो संघ | श्री गुरूना गुरू उपदेश थी, शत्रुंजय नो प्रभंग || 'देवविलास' ३. संवत् १८१० में कचरा कीका ने पुनः संघ निकाला था । संवत् दश प्रष्टादशे, कचरा साहजीइं संघ । श्री शत्रु जयतीर्थ नो, साथे पधार्या देवचन्द || इस संघ की पुष्टि निम्न शिलालेख से भी होती है । " संवत् १८१० माघ सुदी १३ मंगलवार संघवी कचरा कीका वगैरह समस्त परिवार ने सुमतिनाथ प्रतिमा अर्पणकरी, सर्व सूरियों ने प्रतिष्ठा करी । विमलवसही में हाथी पोल की ओर जाते हुए दाहिनी ओर के एक देवालय में यह लेख है । सच्चे ज्ञानदाता -- श्रीमद् वस्तुतः श्रुतदेवी के सच्च े उपासक थे । उन्होंने स्वयं ज्ञानार्जन में कोई कमी न रखी तो उदारतापूर्वक ज्ञानदान देने में भी कोई कसर नहीं रखी। जैसे मेघ जल बरसाने में किसी तरह का भेद-भाव नहीं रखता वैसे श्रीमद् ने भी सम्यग्ज्ञान के दान में साधु श्रावक, समुदाय या गच्छ का कुछ भी भेद नहीं रखा था । यही कारण था कि तपागच्छ के महास्तंभ गिनेजानेवाले मुनिवरों ने अपने सुयोग्य शिष्यों को सैद्धान्तिक अध्ययन कराने के लिये आपसे सविनय विज्ञप्ति की थी । उनकी भावनाओं का प्रादर करते हुए आपने भी बड़े वात्सल्य-पूर्वक उन्हें महान् प्रागमिक ग्रन्थों का गंभीर अध्ययन करवाया था । देखिये कवियरण के शब्दों में “गच्छ चौरासी मुनिवरूरे, नाका नहीं मुख थकी रे, Jain Educationa International लेवा ग्राबे विद्यादान | नय उपनय विधान रे ॥ 'देवविलास' For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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