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[ बीस ]
प्रतिवाद किया। इस पर प्राचार्य श्री जराक्रुद्ध होकर बोले यदि तुम्हें विदित हो तो तुम ही बतला दो। श्रीमद् ने उस समय विनय पूर्वक सूरिजी को शास्त्र पाठ सहित सहस्त्र जिन नाम' बतलाये।
इससे सूरिजी बड़े प्रभावित हुए । विद्वता के साथ स्वभाव की नम्रता और साधुता के सुमेल ने तो सूरिजो को ऐसा आकर्षित किया कि दोनों में गाढ मैत्री हो गई। यह जानकर तो सूरिजी को बड़ा हर्ष हुआ कि वे खरतर गच्छीय विद्वान परम्परा के वाचक राज सागर जी के सुयोग्य शिष्य हैं
मौन रही ने पूछे ज्ञान, तुमे केहना शिष्य निधान रे उपाध्याय राजसागरजी ना शिष्य मीठी वाणी जेहनी इक्षु रे ॥ नम्रता गुण करी बोले ज्ञान, देवचन्द्र ने आप्या मान रे तुम वाचक तो जैन ना काजी, तुमे जनना थभ छो गाजीरे आदि घर छे तमारु भव्य तुमे पण किमन होय कव्य रे ॥
धन्य है ऐसे गुणानुरागी महात्माओं को जो गच्छ व समुदाय के भेद से ऊपर उठ कर गुणों के ग्राहक और साधुता के पूजक होते हैं ।
क्रियोद्धार
___ संसार परिवर्तनशील है। कोई यह दावा नहीं कर सकता कि-अमुक समाज, राष्ट्र, धर्म, जाति या पन्थ अपने उद्गम से लेकर आज तक एक सा रहा हो सामयिकपरिवर्तनों से कोई अछूता नहीं रहा । प्रत्येक चीज उत्थान और पतन के दो बिन्दुओं के बीच लुढ़कती रहती है।
१-इन नामों का वर्णन श्री मद रचित सहस्त्रकूट जिन स्तवन में है।
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