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पंचम खण्ड
॥ कलश ।।
इम द्रव्य भावें समिति समिता, गुप्ति गुप्ता मुविवरा निर्मोह निर्मल शुद्ध चिदघन, तत्व साधन तप्परा देवचंद्र अरिहा आरण विचरें विस्तरे जस संपदा निर्ग्रथ वंदन स्तवन करता, परम मंगल सुख सदा ||८||
पंच भावना सज्झायः
स्वस्ति श्रीमन्दिर परम धरम धांम सुख ठाम । स्यादवाद परिणाम धर, प्ररणम् चेतन राम ॥ १ ॥ महावीर जिनवर नमी, भद्रबाहुसूरीश । वंदी श्री जिन भद्र गरिण, श्री क्षेमेंद्र मुनीश ॥२॥ सद् गुरु सासन देव नमि, वृहत्कल्प अनुसार । सुद्ध भावना साधु नी, भाविस पंच प्रकार ॥३॥ इंद्री' योग कषाय ने, जीपे मुनि निस्संग । इरण जीते कुध्यान जय, जाये चित्त तरंग' ||४|| प्रथम भावना श्रुततणी, बीजी तप तीय सत्व । तुरीय एकता भावता, पंचम भाव सुतत्व ||५||
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१- पांच इन्द्रियां, चार कंषाय और तीन योग को जीते ! २-मानसिक विकल्प ३ - प्रथम श्रुत भावना (२) तप भावना (३) सत्त्व भावना (४) एकत्त्व भावना और (५) तत्त्व भावना है । इनका क्रमशः फल है (१) मनस्थिरता (२) कायदमन, वेदोदय क) शान्त करना (३) निर्भयता (४) लघुता (५) आत्म गुणों की सिद्धि |
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