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पंचम खण्ड
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रात्रों परिश्रवणादिक'परिठवें रे, विधि कृत मंडल ठाम । थिवर कल्पी नो विधि अपवाद छे रे, ग्लानादिक ने काम ।।मु०॥६॥ एह द्रव्य थी भावें परठवें रे, बाधक जे परणाम । द्वेष निवारी मादकता विना रे, सर्व विभाव विरांम ।।मु०॥१०॥ आतम परिणति तत्व मयी करें रे, परिहरता पर भाव । द्रव्य समिति पिण भावभरणी धरें रे, मुनि नो एह स्वभावामु०।११। पंच समिती समिता परणाम थी रे, क्षमा कोष गत रोस । भावन पावन संयम साधता रे, करता गुण गण पोस।।मु०॥१२।। साध्य रसी निज तत्त्वे तन्मयी रे, उत्सर्गी निर माय । योग क्रिया फल भाव अवंचता रे, सुचि अनुभव सुखराय।मु०।१३।।
आरणा युत नाणी वलो दर्शनी रे, निश्चय निग्रह वंत । 'देवचंद्र' एहवा निग्रंथ जे रे, ते माहारा गुरु महंत ।।मु०।।१३।।
षष्ठ मनोगुप्ति सज्झाय
(बैरागी थयो-ए देशी) दुष्ट'तुरंग चित ने कह्यो रे, मोह नृपति परधान। प्रात रोद्रनु खेत्र ए रे, रोकि तूं ज्ञान निधा न रे ।मु०।१।। . मुनि मन वसि करो, मन ए पाश्रव गेह रे । मन ममता रसी, मन थिर यतिवर तेह रे ।।मु०।।२।।
१-मात्रादि
२-दुष्टछोड़ा
३-मन कई पीड़ानों का क्षेत्र है।
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