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श्रीमद् देवचन्द्र पर पीयूष
चतुर्थ श्रादाननिदोपणा समिति सज्माय - (भोलीडा हंसा रे विषय न राचीई-ए देसी) समिति चोथी रे चोगति वारणो, भाखी श्री जिन राज । राखी-परम अहिंसक मुनिवरें चाखी ज्ञान समाज ॥सहज०॥१॥ सहज संवेगी रे समिति परिणमों, साधन प्रातम काज । अाराधन ए संवर भाव नों, भव जल तरण जहाज ।।स०॥२॥ अभिलाषी निज प्रातम तत्त्व ना. साख' धरे सिद्धांत । नाखी सर्व परिग्रह संग नें, ध्यानाकांक्षी रे संत ॥स०॥३॥ संवर पंच तणी ए भावना, निरुषाधिक अप्रमाद । सर्व परिग्रह त्याग असंगता. तेहनो ए अपवाद । स०।।४।। स्याने मुनिवर उपधि संग्रहें, जे परभाव विरत्त । देह अमोही नवि लोही कदा, रलत्रयी संपत्त ।।स०॥५॥ भाव अहिंसकता कारण भणी, द्रव्य अहिंसक साधु । रजोहरण मुख वस्त्रीका धरें, धरवा योग समाधि ।।स०।।६।। शिव साधन नू मूल ते ज्ञान छे तेहनो हेतु सिज्झाय । ते पाहार रे ते वलि पात्र थी, जयणाई ग्रहवाय । स०॥७॥ बाल तरुण नर नारी जंतु नें, नग्न दुगंछा हेतु ।
तेणे चोलपट ग्रही मुनि उपदेसें, सुद्ध धर्म संकेत ॥स०।।८।। १-प्रातमतत्त्व के अभिलासी आगमों की साक्षी से आचरण करते है। २-शरीर पर भो जिनका मोह न हो ३-लोभी ४-नग्नता धूरणा का कारण है
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