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पंचम खण्ड
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मूरख' संगति परषदा, मतिभ्रंशः सिंहासन सार ।।सु०।। अविरति छत्र विराजतो, रति अरति चामर सुखकार।सु०।त०।६। आयुध हिंसा हाथ में, नास्तिक मत मित्र सुप्रीत ।।सु०।। राग द्वेष सूत सूरमा, विसतारे जेह अतीत ॥सु०॥त०।।७।। च्यार कषाय ते पोतरा, वलि काम कपट लघु पुत्र ।।सु०।। प्राश्या विकथा पुत्रिका, मिथ्या मंत्रि सुपबित्र ।।सु०॥त०॥८॥ अशुभ योग सामंत छ, सेनानी दुष्ट प्रमाद ।।सु०।। वेद तीन अधिकारिया, सुभट महा उनमाद ॥सु०॥त०।६।। नगर सेठ चित चपलता, प्रोहित' पाखंडी वास ।।सु०।। कोटवाल चित चंडता, पालस मित्र अंग खवास ॥सु०॥१०॥ हेरु' कुश्रत धडवी, आरति अति रुद्र कुध्यान ॥सु०॥ चोर चपलते काठिया, लूटे सहु नो धन ग्यान ।।सु०॥त ॥११॥ हर्ष शोक गज गाजता, इंद्रिय ना विषय तुरंग ।।सु०।। पारण मिथ्या उपदेशनी, अविरति जग मांहि अभंग।।सु०।त०॥१२ चौरासी लख देश में, अड करम उदें में साथ ॥सु०॥ बंध हेत नृपनि कथा, सहु जीव कीया निज हाथ ।।सु०॥त०।१३।। भव भय भमर भम्यो बहु, इण सत्रु से तूं दीन ।सु०॥ देवचंद्र तजि मोह नें,हुइ निज आत्म रस लीन ।।सु०॥त०।।१४।।
१-मुर्ख संगतिरूप सभा.है। २-मतिभ्रष्टतारूप सिंहासन हैं। ३-असंयम-छम है ४-रूचि अरूवि चामर है। ५-पुरोहित। ६-क्रूरता । . ७-उठाइगिरे-चोर ।
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