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पंचम खण्ड
गहन अर्थ भाषा अति संस्कृत, समझे अति मतिवंत रे । तिरण श्री संघे विनव्या गणधर, सुगम प्रकाशो संत रे ।।वीर०॥७॥ जगत दयाल प्राचारज वोल्या, अंग इग्यार निधान रे। आचारांगे पातार मोक्ष नो, द्रव्य भाव सुप्रधान रे ।।वीर०॥८॥ सूयगडांगे तत्व नो शोधन, ठाणांगे दश ठाण रे। समबायांगे बोल विविध छै, आगम नो मंडाण रे ॥वीर०॥६॥
विवाह पन्नती नाम भगवती, अति गंभीर उदार रे । ज्ञाता धर्म कथा मुनिचर्या, उपाशक दशा विचार रे ॥वीर०॥१०॥ अंतगड़ दशा अनुत्तरोववाइ, -दशा प्रश्न व्याकरण रे। .. सूत्र विपाक ए अंग इग्यारह, गूंथ्या अर्थ सुवरण रे ।वीर०॥११॥ अर्द्धमागधी भाषा मनोहर, सवि जन ने हितकार रे। गणधर वचन ते 'अंग' कहीजे, शेष पयन्ना सार रे ॥वीर०॥१२॥ ए जिन अागम अति उपगारी, केवल ज्ञान निदान रे। . अभ्यासो मुनि प्रातम हेते, निर्मल समता थान रे ॥वीर०॥१३॥
श्रुत सज्झाये जिन पद लहीये, थाये तत्व नी शोध रे । देवचंद्र प्राणाये सेवो, जिम लहो शुद्ध प्रबोष है और०॥१४॥
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