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________________ १२४ ] द्वादशांग एवं १४ पूर्व- सज्झाय ( ढाल - पंचमी तप तुम करो रे प्रारणा, ए देशी) श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष वीर जिणेसर जग उपगारी, भाखी त्रिपदी सार रे । गणधर बोध वध्यो प्रति निर्मल, पसर्योश्रुत विस्तार रे || वीर०|| १ | । दृष्टिवाद अध्ययन प्रकाश्या, परिकर्म सूत्र अनुयोग रे पूर्व अनुयोग पूर्वगत पंचम चूलिका शुद्ध उपयोग रे || वीर० ||२|| वस्तु सत्कार सुविधि नो देशन, कारण कार्य प्रपंच रे । पूर्वगत नामे विस्तार्थी चोथों बहु गुरण संच रे || वीर० || ३ || । प्रथम पूर्व उत्पाद' प्ररूप्यो, प्रग्रायणी' द्वितीय रे वीर्य - प्रवाद' ने प्रस्तिप्रवाद ए, ज्ञान प्रवाद' अमेय रे || वीर० ॥४॥ । सत्यप्रवाद ने श्रात्मप्रवाद नो, कर्मप्रवाद पर रे प्रत्याख्यान विद्या" सुप्रवादन, कल्यारण .११ नाम सनूर रे || वीर० ।। ५ ।। 5 प्राणावाया' क्रिया " सुविशालह, सुगुरण लोक' विदुसार रे । प्रथम कह्या गणधर तिरण पूरव, नाम थयो सुखकार रे || वीर०||६|| Jain Educationa International १ - गणधरों ने जिनके पहले रचना की वे पूर्व कहलाये वे १४ है । २- प्रग्रायणीपूर्व ३ - वीर्यप्रवाद ४- प्रस्तिप्रवाद ५- ज्ञानप्रसाद ७- श्रात्मप्रवाद - कर्मप्रवाद ε- प्रत्याख्यानपूर्व १० - विद्यापूर्व १२- प्राणवादपूर्व १३- क्रियापूर्व १४ - लोकविदुपूर्वं । For Personal and Private Use Only १ उत्पाद पूर्व, ६- सत्यप्रवाद ११ - कल्याणपूर्व www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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