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________________ १२२ ] धीमद् देवचन्द्र पद्य पीयूष श्री पार्श्वनाथ गणधर सज्झाय पास जिनेश्वर देवना जी, गणधर दस गुण खाण । कल्पसूत्र में अड' क ह्या जी, ते कारण वसे जारण । चतुर नर, वंदो गणधर स्वाम ।।१।। पहेलो गणधर पासनो जी, 'शुभ' नामे शुभ धार । 'आर्यघोष' बीजो स्तवं जी, तीय' 'वशिष्ट' उदार ॥चतु०॥२॥ 'ब्रह्मचारो' चोथो नमुं जी, पंचम 'सोम' सनूर । छट्ठो 'श्री हरि' सातमो जी, 'वीरभद्र' गुण भूर ॥चतु०।।३।। सूरि शिरोमणि पाठमो जी, 'जस' नामे परधान । 'अावश्यक नियुक्ति' थी जी, जय तेम विजय निधान ।।चतु०॥४॥ द्वादश अंगधरू सहू जी, सहू पहोंता निरवाण । देवचंद्र' गुरु तत्त्वनाजी, सेवो चतुर सुजाण ।।चतु०।।५।। द्वादशांगी समाय (अजित जिन तारजो रे, ए देशी) हवे नवि तजजो रे, वीर चरण अरविंद, सदा तुमे भजजो रे जिनवर गुरण मकरंद ।। प्रांकणी।। श्री इन्द्रभूति गगा घर इम भाखे, सांभलजो तमे भाई । वाद मिसे' पण इरण दिशि अाव्या, पाम्य मोक्ष सजाई हिवे ।।१। १-पाठ :-जीसरा -वाद विवाद के बहाने Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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