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पंचम खण्ड
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ज्ञान उद्दीपना थकी आनंद मय,
देखी निज देव ने कर्म मोड़ी ॥म०।।११।। छोडी परसंग आत्मा भणी सिद्ध सम,
ध्यावता सुमति सुं मोह वारे । आत्म स्वभाव गत जगत सहु अन्य गणी,
ज्ञान निधि मोक्ष लक्ष्मी सुधारे ।।म०।।१२।।
ज्ञान निधि मावा तत्त्व चिंता करे विषय ने परि हरे,
स्वहित निज ज्ञान प्रानंद दरीयो । सुमति संयुक्त तप ध्यान संयम सहित,
एहवो साध चारित्र भरीयो ।म०॥१३॥ एहवा पंडितो वचन रचना थकी,
नित थुणे आत्म ने बहुत ऐसा । शुद्ध अनुभूति पानंद सुं राचीया;
___ कटे भव पास दुरलंभ तेसा ॥म०॥१४ एहवा योगधारी जिके मुनिवरु,
ध्यान निश्चल ते केईज राखे । ध्यान ने योग अरणयोग नी ए कथा,
ग्रंथ अनसार देवचंद्र भाखे ।।म०।१५।। (ध्यान दीपिका में से)
पाठान्तर
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