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________________ पंचम खण्ड [ १२१ ज्ञान उद्दीपना थकी आनंद मय, देखी निज देव ने कर्म मोड़ी ॥म०।।११।। छोडी परसंग आत्मा भणी सिद्ध सम, ध्यावता सुमति सुं मोह वारे । आत्म स्वभाव गत जगत सहु अन्य गणी, ज्ञान निधि मोक्ष लक्ष्मी सुधारे ।।म०।।१२।। ज्ञान निधि मावा तत्त्व चिंता करे विषय ने परि हरे, स्वहित निज ज्ञान प्रानंद दरीयो । सुमति संयुक्त तप ध्यान संयम सहित, एहवो साध चारित्र भरीयो ।म०॥१३॥ एहवा पंडितो वचन रचना थकी, नित थुणे आत्म ने बहुत ऐसा । शुद्ध अनुभूति पानंद सुं राचीया; ___ कटे भव पास दुरलंभ तेसा ॥म०॥१४ एहवा योगधारी जिके मुनिवरु, ध्यान निश्चल ते केईज राखे । ध्यान ने योग अरणयोग नी ए कथा, ग्रंथ अनसार देवचंद्र भाखे ।।म०।१५।। (ध्यान दीपिका में से) पाठान्तर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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