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________________ तृतीय खार [ १०५ वीस स्थानक स्तुति अरिहंत १ सिद्धर पवयण ३ प्राचारिज ४ थिवराग ५ उवझाय ६ साहु ७ श्रुत ८ दंसरण : विनय १० पहाण चारित११ ब्रह्म १२ किरिया १३ तप १४ गोयम १५ जिनभाण १६ मंयम १७ नाग १८ श्रुत १६ संघ २.० सेवो वीसे ठाग ।।१।। उत्कृष्ट जिनवर एक सो . सत्तरिः धीर । वलि काल जघन्ये जिनवर वीस . गभीर ।। जिन थाय अनंता अतीत अनागत काल । ए वीसे थानक अाराधो गण माल ॥।। आवश्यक वे वेला जिन वंदन त्रिगण काल । थानक पद गुणवा सहस्स दोयं सुकपालं ।। काउसग गुण स्तवना पूजा प्रभावना सार । इम सासन बछल करतां भव नो पार ॥३॥ ममरीज: अहनिशि गुण रागी सुर साथ । जख जखणी सुर पति वेयावच्च कर नाथ ।। थानक तप विधि सु जे सेवे मन रंग ।।. देवचंद्र. प्राणायै सानिधि करै तस चंग ॥४॥ - १-जिन शासन-संघ २-प्राचार्य ३-रथविर, ज्ञानवृद्ध, तपोवृद्ध, पर्यायवृद्ध आदि ४-उपाध्याय ५-साधु ६-तीर्थकर ७-दोनों टाईम प्रतिक्रमण ८-संघ-शासन का वात्सल्य-प्रभावना, करना स्वधर्मी वात्सल्य करना इत्यादि । Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003830
Book TitleShrimad Devchand Padya Piyush
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHemprabhashreeji, Sohanraj Bhansali
PublisherJindattsuri Gyanbhandar
Publication Year
Total Pages292
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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