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श्रीमद् देवचन्द्र पद्य पोयूष
दीवाली स्तवन ग्राज म्हारे दीवाली थइ सार, जिन मुख दीठां थी ।।ग्रांकणी।। अनादि विभाव तिमिर रयणी में, प्रभु दर्शनं प्राधार रे । सम्यग् दर्शन दीप प्रकाश्यो, ज्ञान ज्योति विस्तार ।। जिन०॥१॥ आतम गुण अविराधन करुणा, गूगा ग्रानंद प्रमोद रे । परभावे अरक्त द्विष्टता, मध्यस्थता सुविनोद ।।जी।।२।। निज गुण साधन रसिय मैत्री, साध्यालबी रोति रे । सम्यक् सुखड़ी रस अास्वादी, घृत तंबोल प्रतीति ।।जि०॥३॥ जिन मुख दीठे ध्यान आरोहण, एह कल्याणक वात रे। . आतम धर्म प्रकाश चेतना, देवचंद्र अवदात ।।जि०।।४।।
नव पद स्तवन तीरथ पति अरिहा नमी, धरम धुरंधर धीरो जी देसना अमृत वरसता, निज वीरज वड वीरो जी
वर अखय निर्मल ज्ञान भासन, सर्व भाव प्रकासता निज शुद्ध श्रद्धा प्रात्म भावे, चरण थिरता वासता निज नाम कर्म प्रभाव अतिसय प्रातिहारज शोभता
जग जंतु करुणा वंत भगवंत भविक जन नै थोभता ॥१॥ सकल करम मल क्षय करी, पूरण सुद्ध सरूपो जी , अव्याबाध प्रभुतामयी, आतम संपति भूपो जी
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